14 नवंबर यानि बाल दिवस, माने की बच्चों को प्यार करने का विशेष दिन. बच्चे प्यारे होते हैं इसीलिए तो वह सबसे प्यार भी करते हैं क्योंकि वे किसी से किसी तरह का भेदभाव नहीं करते. बच्चे अजनबी के गोद में जाने से भले ही कतराते हैं लेकिन दूर से देखने पर एक प्यारी सी मुस्कान लिए टूकूर - टूकूर मासूम निगाहों से देखते हैं. 'मन सच्चा बच्चा का' यह बात सार्वभौमिक सत्य है. बच्चे तो आज भी बच्चे है और आने वाले कल भी बच्चों का स्वभाव प्रेम, शीतलता और सच्चाई से सराबोर रहेगा लेकिन बढते दौर के साथ हमारा प्यार बच्चों के प्रति काठ बन गया है. माँ के ममत्व प्रेम की जगह डिब्बों के दूध और अतुलनीय गोद की जगह आधुनिक पालनो व झोला-झूलो ने ले ली है. किमत बाजार के दूध और पालनो की जितनी भी हो लेकिन मां का प्यार कोई वस्तु नहीं है. पिता के पास फुर्सत नहीं है कि बच्चों का मार्गदर्शन करें लेकिन उन्हें क्या पता कि उनका वह अंगुली थाम, कान पकङ और गोद में उठा कर दुनिया को दिखाना और जिंदगी जीना सिखाना किसी प्ले या किड्स स्कूल या किसी शिक्षक व प्रोफेसर के बस की बात नहीं. बच्चों का मालिश और गोद में लेकर प्यार का निवाला खिलाने के लिए अब वक्त नहीं है. लेकिन हम बङे होकर भूल गए कि इनका संबंध कहीं न कहीं हमारे जज्बातों और आने वाले दिनों से जुड़ा है. घर की जगह हाॅस्टल और माता - पिता की जिम्मेदारी शिक्षकों पर लादी जा रही है लेकिन एक बात तो जानते ही हैं कि 'अपने तो अपने होते हैं'. हाँ! बाल दिवस पर भले ही हम शिक्षक या माता पिता होने के नाते बच्चों के लिए मिठाई बांटे या स्नेह वाली सेल्फी पोस्ट करें. लेकिन बच्चों के लिए माता-पिता किसी विशेष समय अवधि या दिन के लिए नहीं बल्कि ताउम्र रहना है. अपने आंचल से स्नेह का छांव बनाए रखें ताकि वह भी एक कामयाब मां - बाप बन सके.