हर ठंड के लिए गर्मी जरुरी है. बिना गर्मी के ठण्ड थोड़े ही भागती है, और अगर गर्मी लानी है तो आग लगानी पड़ेगी. ठण्ड का मौसम है तो हर कोई तो आग पर खुद को सेंक रहा होगा, तो कोई आग जलाने की तैयारी कर रहा होगा. भैया, आप यही सोंच रहे हो ना की, ठंड तो सिगरेट और चाय से भी दूर की जा सकती है पर भाई उसके लिए भी तो आग जलाना ही पड़ेगा. तो फिर आग जलाओ ना इन्तेजार किसका है ?
ज्यादतर भारतीय पतियों को तो बीवी से ही सारे काम करवाने की आदत हैं. आग पत्नी जलायेगी, चाय भी पत्नी बनाएगी, कम्बल भी पत्नी ओढायेगी आदि आदि. मतलब यह की हम पत्नी आश्रित हैं, यह बात एक दम सपाट-सीधी है. लेकिन इस बात से तो पतिव्रता की मर्दानगी को चोट लग रहा है तो यह कबूल करने में दिक्कत है. लेकिन जब सारे काम के लिए बीवी यानि की महिला पर निर्भर है तो फिर उसको भी मन से ही आग लगाने दो ना, जोर जबरजस्ती क्यों भाई? उसको भी अपने मन की लकड़ियां सजाने दो. हर जगह पर दबाव डालना ही मर्दानगी है क्या? कभी उसको भी अपने मन के पतीले में उबलने दो.
बिस्तर से लेकर रोड तक नारी को बस रगड़ रहे हो. रोड की गिट्टी-डामर की तरह बस दबाते आ रहे हो और इनकी भी महानता देखिये, रगड़ने से ना चिंगारी बन रही हैं और ना ही दबाने से दायरे को पार कर पा रही हैं. अरे, हमारी माँ, बहन, बेटी, गर्लफ्रेंड, प्रेमिका, बीवी जो भी हो आप; आखिर कब तक यूँ ठंड में पड़ी -पड़ी रिश्तों को गर्म करती रहोगी! बोलो कब तक गंदे कमेंट को कान की बाली समझकर लटकाये फिरोगी! गाली-गलौज़, फ़ब्तियां, कथित मर्दों की मर्दानगी का कोहरा घना होता जा रहा है. तो फिर क्या सोंच रही हो, अपने मन की ठंडक को भगाओ और आज-अभी अपने अंदर की आग को जलाओ.
चूल्हा और दीया में ही आग जलाओगी, घर और मंदिर को ही रौशन करोगी. खुद से ही क्यों सिमट कर रही हो! हाथ में चूड़ियां हो या दीया तुम में तो वह आग है, जो की किसी सूरज,अनिल में नहीं.