हाँ, मेरी नज़र ब्रा के स्ट्रैप पर जा के अटक जाती है, जब ब्रा और पैंटी को टंगा हुआ देखता हूँ तो मेरे आँखों में भी नशा सा छा जाता हैं. जो बची-खुची फीलिंग्स रहती हैं उनको मेरे दोस्त बोल- बोल कर के जगा देते हैं. और कौन नहीं देखता है, जब सामने कोई भी चीज आ जाये तो हम देखते हैं. हाँ, यह अलग बात हैं की कोई बताता हैं और कोई छुपाता हैं और कोई बाजार में लुटाता हैं उन कपड़ों का मजाक. पर देखना गलत नहीं है, खुद के अंदर आपको क्या महसूस होता है यह भी नेचुरल है. रस्ते पर चलते-चलते सामने जब टट्टी या गोबर या पॉलिथीन में फेका गया खाना दिख जाता हैं तो मन में भी वैसे ही घिन्न उठती हैं, चाहे आप घर से पूजा-पाठ और खीर-मलाई काहे ना खा क्र निकले हो. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं हैं की अब हम रस्ते वाली घिन्न की बात बता कर के ऑफिस और घर में बैठे दोस्तों के अंदर भी वैसा घृणा भर दे. नज़ारे बेशर्म नहीं होती वह तो एक कैमरा की तरह हैं, जो फ्रेम में आएगा कैप्चर तो होगा ही पर मन की मर्यादा को सेंसर बोर्ड बनाकर उस सीन को काट भी सकते हैं, काटना चाहे तो, अगर बेमतलब बात का मज़ा ना लेना हो तो! महिलाओं के पहनावा और चाल-चलन पर सवाल तो उठाते हैं पर उन मजदूर महिलाओं के फटे ब्लाउज़ को ढकने की बात कोई क्यों नहीं कर रहा हैं. उनकी पूरी ज़िन्दगी तो पेटीकोट और फटी साड़ी में कट जाता है. और हम हैं की पोर्न और ब्रा -पैंटी पर अटके पड़े हैं. अरे मेरी गर्लफ्रेंड या हमदोनों अपनी मर्जी से सेक्स करते हैं पर उसको मैं MMS नहीं बनाता, ना ही दोस्तों के बीच उस सेक्स की कहानी सुनाता हूँ. क्यूंकि मेरा दिल तो यही कहता हैं की हम दोनों अपनी मर्जी से सेक्स करते हैं, हां मैं ब्रा-पैंटी भी देखता हूँ पर उन बातों को सामाजिक स्तर पर उछालता क्योंकि उनके सम्मान के साथ मैं अपनी मान - मर्यादा का भी ख्याल रखता हूँ. हर इंसान तो अपने कपडे के अंदर नंगा होता है पर इसका मतलब यह नहीं होता हैं हम नंगे घूमे, बोलो आजादी हैं, सोंचो जो जी करता हैं पर अपने मनमर्जियां को किसी और पर थोपो नहीं और ना ही उसको बाजार में नंगा करो. उसको तो नंगा कर रहे हो पर अपनी गिरी हुयी नज़र से खुद को तो बचा लो क्योंकि उसी में से कोई ऐसा भी दोस्त होता हैं जो तुझे कहता है की ' साला! पूरा कुत्ता हैं, हांड़ी में मुँह भी मराता हैं और बाजार में खुद को निलाम भी करता है'. लंगोट का ढीलापन बीवी जानकर छुपा लेती हैं पर अपने अंडरमन की नपुंसकता बाजार में काहे बेच रहे हो! मुद्दा और भी हैं बहस के लिए यार, महिलाओं को आज़ाद जीने दो.