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एक छोटा प्रयास ......!!!

24 मई 2015

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उस दिन सबेरे 6 बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला । मैं रेलवे स्टेशन पहुचा , पर देरी से पहुचने कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी । अगली ट्रेन 9.30 को थी । मैंने निर्णय लिया की मैं दूसरी एक ट्रेन जो 7 बजे दूसरे छोटे स्टेशन से निकलती थी उससे जाऊ । मैं बस से अगले स्टेशन पर गया पर वो ट्रेन भी मुझसे छुट गयी । मेरे पास 9.30 की ट्रेन के आलावा कोई चारा नही था । मैं पहले वाले स्टेशन वापस लौटा। फिर सोचा कहि नाश्ता कर लिया जाए ताकि थोडा टाइम पास हो जाए । मैं होटल की ओर जा रहा था । अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी । दोनों लगभग 10 साल के रहे होंगे । बच्चों की हालत बहुत खराब हो थी । कमजोरी के कारण अस्थिपिंजर साफ दिखाई दे रहे थे । वे भूखे लग रहे थे । छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था । बड़ा उसे चुप करा ने कोशिश कर रहा था । मैं अचानक रुक गया । दौड़ती भागती जिंदगी में यह ठहरसे गये जीवन को देख मेरा मन भर आया । सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाए । मैंने उन्हें 10 रु दे कर आगे बढ़ गया । तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हु मैं । 10 रु क्या मिलेगा । चाय तक ढंग से न मिलेगी । स्वयं पर शर्म आयी । फिर वापस लौटा । मैंने बच्चों से कहा कुछ खाओगे । बच्चे थोड़े असमंजस में पड़े ।मैंने कहा बेटा मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ तुम भी कर लो । वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए । उनके कपड़े गंदे होने से होटल वाले डाट दिया । भगाने लगा । मैंने कहा भाई साहब उन्हें जो खाना है वो उन्हें दो । पैसे मैं दूंगा । होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा.. उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी । बच्चों ने नाश्ता मिठाई व् लस्सी मांगी । सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया । बच्चे जब खाने लगे । उनके चेहरे की ख़ुशी कुछ विरली ही थी । मैंने बच्चों को कहा बेटा अब जो मैंने तुम्हे पैसे दिए है उसमे 1 रु का शैम्पू ले कर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना । और फिर दोपहर शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना । और मैं नाश्ते के पैसे दे कर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला । वहा आसपास के लोग बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे । होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे । मैं स्टेशन की ओर निकला। थोडा मन भारी लग रहा था । मन थोडा उनके बारे में सोच कर दुखी हो रहा था । रास्ते में मंदिर आया । मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा हे भगवान आप कहा हो । इन बच्चों की ये हालत ये भुख । आप कैसे चुप बैठ सकते है । दूसरे ही क्षण मेरे मन में विचार कौंधा । पुत्र अभी तक जिसने उन्हें नाश्ता दे रहा था वो कौन था । क्या तुम्हें लगता है तुमने वह सब अपनी सोच किया । मैं स्तब्ध हो गया । मेरे सारे प्रश्न समाप्त हो गए । लगा जैसे मैंने ईश्वर से बात की हो । मेरे समझ आ चूका था हम निमित्त मात्र है उसके कार्य कलाप के । वो महान है। ..क्या हमने कभी ऐसा किया या आज ऐसा करने का विचार बन रहा है ? "हम बदलेंगे, युग बदलेगा हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा.." धन्यवाद ...!!!
आनंद कुमार

आनंद कुमार

धन्यवाद ...

25 मई 2015

शालिनी कौशिक एडवोकेट

शालिनी कौशिक एडवोकेट

aapne ye achchha kiya ki unhen khana khilaya isse aapne unhen bhikhari banne se bacha liya varna unke liye paise mangne ka dhnadha chal jata .vaise agar ek hath dusre hath kee aise hi madad kare to sthiti me sudhar aa sakta hai .veri nice post .

24 मई 2015

anamika

anamika

सच हैं,नर में नारायण बसते है।

24 मई 2015

आनंद कुमार

आनंद कुमार

धन्यवाद ...

24 मई 2015

Tamanna Singh

Tamanna Singh

अति सुन्दर

24 मई 2015

Prince Anand

Prince Anand

बहुत खूब

24 मई 2015

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अनाथ

28 जनवरी 2015
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नीलम के ब्याह को चार बरस बीत गये थे। हर वक्त सबकी खोजी नजरें उसे परेशान करती रहती थीं। घर में सास, ननदें, पति सभी को एक बच्चे की इच्छा थी, जो नीलम पूरी न कर पा रही थी। आखिर एक फैसला लिया गया कि बच्चा गोद ले लिया जाये। अनाथालय से ‪#‎बेटी‬ ले ली गई। रिश्तेदारों को निमंत्रण भेजे गये, बड़ी धूम-धाम से ना

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रिश्ते और राश्ते सिक्के के दो पहलू हैं कभी रिश्ते निभाते हुए राश्ते बदल जाते हैं तो कभी राश्ते पर चलते हुए रिश्ते बदल जाते हैं.

28 जनवरी 2015
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माँ की मृत्यु के बाद तीसरा दिन था। घर की परंपरा के अनुसार, मृतक के वंशज उनकी स्मृति में अपनी प्रिय वस्तु का त्याग किया करते थे। मैंआज के बाद बैंगनी रंग नही पहनूँगा।” बड़ा बेटा बोला। वैसे भी जिस ऊँचे ओहदे पर वो था, उसे बैंगनी रंग शायद ही कभी पहनना पड़ता। फिर भी सभी ने तारीफें की। मँझला कहाँ पीछे रहता,

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हर सफल वयक्ति के पीछे एक महिला होती है .... वह माँ, बहन और पत्नी कोई भी हो सकती है .

1 फरवरी 2015
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"एक बार जरू पढ़े क्योंकि हम जानते है जब आप पढ़ना शुरू करेंगे आखिर तक पढ़े बिना आप रह नहीं पायेगे...." ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ पिछले हफ्ते मेरी पत्नी को बुखार था। पहले दिन तो उसने बताया ही नहीं कि उसे बुखार है,दूसरे दिन जब उससे सुबह उठा नहीं गया तो मैंने यूं ही पूछ लिया कि तबीयत खराब है क्या

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क्रोध..... वो तेजाब है जो बर्तन को अधिक नष्ट करता है जिसमे वो भरा होता है .....ना की उसको जिस पर वो डाला जाता हैं !!!

21 मार्च 2015
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एक पण्डितजी महाराज क्रोध न करने पर उपदेश दे रहे थे| कह रहे थे - "क्रोध आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है, उससे आदमी की बुद्धि नष्ट हो जाती है| जिस आदमी में बुद्धि नहीं रहती, वह पशु बन जाता है|" लोग बड़ी श्रद्धा से पण्डितजी का उपदेश सुन रहे थे पण्डितजी ने कहा - "क्रोध चाण्डाल होता है| उससे हमेशा बचकर र

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"क्या भगवान ने शैतान को बनाया या किसी और ने.....?"

24 मई 2015
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सन् 1902 में, एक professor ने अपने छात्र से पुछा...... क्या वह भगवान था, जिसने इस संसार की हर वस्तु को बनाया? छात्र का जवाब : हां । उन्होंने फिर पुछा:- शैतान क्या हैं? क्या भगवान ने इसे भी बनाया ? छात्र चुप हो गया... .....! फिर छात्र ने आग्रह किया कि- क्या वह उनसे कुछ सवाल पुछ सकता हैं? Professor

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एक छोटा प्रयास ......!!!

24 मई 2015
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उस दिन सबेरे 6 बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला । मैं रेलवे स्टेशन पहुचा , पर देरी से पहुचने कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी । अगली ट्रेन 9.30 को थी । मैंने निर्णय लिया की मैं दूसरी एक ट्रेन जो 7 बजे दूसरे छोटे स्टेशन से निकलती थी उससे जाऊ । मैं बस से अगले स्टेशन पर गया पर वो ट्रेन भी

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नेक बनने के लिए ऐसी कोशिश करनी चाहिए जैसी खूबसूरत दिखने के लिए करते है.

28 जनवरी 2015
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मास्टर जी क्लास में पढ़ा रहे थे , तभी पीछे से दो बच्चों के आपस में झगड़ा करने की आवाज़ आने लगी। “क्या हुआ तुम लोग इस तरह झगड़ क्यों रहे हो ? ” , मास्टर जी ने पूछा। राहुल : सर , अमित अपनी बात को लेकर अड़ा है और मेरी सुनने को तैयार ही नहीं है। अमित : नहीं सर , राहुल जो कह रहा है वो बिलकुल गलत है इसलिए उसकी

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किसी के दर्द की दवा बनो जख्म तो हर इंसान देता है.

28 जनवरी 2015
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छोटे छोटे दो दोस्त थे । एक गरीब था और दुसरा अमीर था । गरीब अनाथ था गरीब के पास कुछ नही था रहने को घर भी नही था । लेकिन अमीर दोस्त उसे किसी भी तरह की तकलीफ सहन नही करने देता था । जब वो अपने गरीब दोस्त को घर ले जाता था तो उसके पापा उसके गरीब दोस्त से नफरत करते थे । उससे हमेशा कहते थे कि बेटा इन गरीबो

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किसी के दर्द की दवा बनो जख्म तो हर इंसान देता है.

28 जनवरी 2015
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छोटे छोटे दो दोस्त थे । एक गरीब था और दुसरा अमीर था । गरीब अनाथ था गरीब के पास कुछ नही था रहने को घर भी नही था । लेकिन अमीर दोस्त उसे किसी भी तरह की तकलीफ सहन नही करने देता था । जब वो अपने गरीब दोस्त को घर ले जाता था तो उसके पापा उसके गरीब दोस्त से नफरत करते थे । उससे हमेशा कहते थे कि बेटा इन गरीबो

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किसी के दर्द की दवा बनो जख्म तो हर इंसान देता है.

28 जनवरी 2015
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छोटे छोटे दो दोस्त थे । एक गरीब था और दुसरा अमीर था । गरीब अनाथ था गरीब के पास कुछ नही था रहने को घर भी नही था । लेकिन अमीर दोस्त उसे किसी भी तरह की तकलीफ सहन नही करने देता था । जब वो अपने गरीब दोस्त को घर ले जाता था तो उसके पापा उसके गरीब दोस्त से नफरत करते थे । उससे हमेशा कहते थे कि बेटा इन गरीबो

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किसी के दर्द की दवा बनो जख्म तो हर इंसान देता है.

28 जनवरी 2015
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छोटे छोटे दो दोस्त थे । एक गरीब था और दुसरा अमीर था । गरीब अनाथ था गरीब के पास कुछ नही था रहने को घर भी नही था । लेकिन अमीर दोस्त उसे किसी भी तरह की तकलीफ सहन नही करने देता था । जब वो अपने गरीब दोस्त को घर ले जाता था तो उसके पापा उसके गरीब दोस्त से नफरत करते थे । उससे हमेशा कहते थे कि बेटा इन गरीबो

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नेक बनने के लिए ऐसी कोशिश करनी चाहिए जैसी खूबसूरत दिखने के लिए करते है.

28 जनवरी 2015
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मास्टर जी क्लास में पढ़ा रहे थे , तभी पीछे से दो बच्चों के आपस में झगड़ा करने की आवाज़ आने लगी। “क्या हुआ तुम लोग इस तरह झगड़ क्यों रहे हो ? ” , मास्टर जी ने पूछा। राहुल : सर , अमित अपनी बात को लेकर अड़ा है और मेरी सुनने को तैयार ही नहीं है। अमित : नहीं सर , राहुल जो कह रहा है वो बिलकुल गलत है इसलिए उसकी

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असली पूजा ?

6 जून 2016
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गरमी का मौसम था, मैने सोचा काम पे जाने से पहले गन्ने का रस पीकर काम पर जाता हूँ।एक छोटे से गन्ने की रस की दुकान पर गया।वह काफी भीड-भाड का इलाका था, वहीं पर काफी छोटी-छोटी फूलो की, पूजा की सामग्री ऐसी और कुछ दुकानें थीं। और सामने ही एक बडा मंदिर भी था , इसलिए उस इलाके में हमेशा भीड रहती है।मैंने रस क

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शक्तिशाली इंसान कौन ?

13 जून 2016
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एक पिता ने अपने बेटे की बेहतरीन परवरिश की। बेटा एक सफल इंसान बना और एक मल्टीनेशनल कम्पनी का सी ई ओ बना। शादी हुई और एक सुन्दर सलीकेदार पत्नी उसे मिली।बूढ़े हो चले पिता ने एक दिन शहर जाकर अपने बेटे से मिलने की सोचा। वह सीधे उसके ऑफिस गया। भव्य ऑफिस, मातहत ढेरों कर्मचारी, सब देख पिता गर्व से फूल गया।बे

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शहादत

13 जून 2016
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उस दिन मैंने उस गाँव में , उस बुढे किसान को देखा उसके चश्मे का कांच टुटा हुआ था और पैरो की चप्पले फटी हुई थी... उसके चेहरे पर बड़ी वीरानी थीमुझे बस से उतरते देख ; वो दौड़ कर मेरे पास आया मेरा हाथ पकड़ कर बोला ; मेरा बेटा कैसा है बड़े दिन हुए है , उसे जंग पर गए हुए ; कह कर गया था कि ; जल्दी लौट कर आऊ

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प्रेम और त्याग

13 जून 2016
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शादी की वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर पति-पत्नी साथ में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे।संसार की दृष्टि में वो एक आदर्श युगल था।प्रेम भी बहुत था दोनों में लेकिन कुछ समय से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संबंधों पर समय की धूल जम रही है। शिकायतें धीरे-धीरे बढ़ रही थीं।बातें करते-करते अचानक पत्नी ने एक प्रस्ताव

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सामाजिक चरित्र के निर्माण की आवश्यकता

10 अप्रैल 2018
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सामाजिक चरित्र का निर्माणकिसी भी समाज के सफल निर्माण और क्रियानावन के लिए समाज के एक उच्च चरित्र का होना अनिवार्य है| सामाजिक चरित्र किसी भी समाज के लिए एक मुख्य अतुलनीय और सुद्रिढ पूँजी है। सामाजिक संरचना

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