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छुपी असलीयत

3 अगस्त 2022

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’चेहरे पे चेहरे लगे हैं, असलीयत पहचाने कौन, इसी मुखौटे लगे चेहरों की भीड़ में कोई मेरा भी राजकुमार होगा, जिसकी साँसों में बसकर उसकी साँसों में घूल आउंगी। आयशा ने ऐसा सोचा मगर उसके दिल में एक ख्याल आया कि जिस तरह सब पर विश्वास नहीं करने की कोई वजह नहीं है, ठीक उसी प्रकार किसी पे अविश्वास करने की भी कोई वजह नहीं है। ’ हकीकत वाली बात ख्याल बन कर उपर से निकल गई और ख्वाब भरी बातें आयशा के दिल में घर कर गई और आयशा ने राजकुमार सी छवी वाले सौरभ को अपना दिल दे दिया, न कुछ पुछा और अंधे प्यार की ओर अंधी बन कर दौड़ गई। न सोने की चिन्ता, न भुख न प्यास, न कोई इच्छा ही बाकी रही और आयशा ने जब अपने इस हालत इस जज़्बात को सौरभ के सामने ब्यां किया तो सौरभ ने कहा ’’ मेरा भी हाल बिल्कूल ऐसा ही है, और तो और मेरी हालत तो तुमसे भी ज्यादा खराब है। ’’ फिर क्या था, मीठे बोल सुनकर ही मंत्रमुग्ध हो चुकी आयशा के कदम फिर जमीन पे कहाँ टीके, वो तो अर्श की और उड़ चली।

एक दुसरे को बाँहों में समेटे आयशा और सौरभ प्यार भरे सपनों में खोए रहे।

’’ अच्छा एक बात पुछुं ? ’’आयशा ने सौरभ के बालों में अँगुली फिराते हुए कहा तो सौरभ ने भी आयशा की नाक पकड़ कर कहा ’’ पुछो न जान। अब हमलोगों के बीच पुछने वाली कौन सी बात है जबकि अपनी हर साँस तुम्हारे नाम कर चुका हूँ तो फिर क्या सुनना, क्या जानना बाकी रह गया है ? ’’ 

आयशा ने कहा ’’ हमारा मिलना छुप-छुप के ही चलेगा या शादी के लिए तुम अपने घर में बात भी करोगे ? ’’

सौरभ ने मुस्कराकर कहा ’’ बात भी करागे, क्या मतलब ? अरे मैं तो बात भी कर चुका हूँ। अगले सप्ताह तुमको अपने घर ले कर जाउंगा। ’’ 

’’ ओ सौरभ, तुम कितने अच्छे हो, फिर तो मैं भी अपने घर में बात करूंगी। ’’

आयशा के इस बात पे सौरभ ने कहा ’’ तुम अपने घर में बात कर तो पाओगी न, डर तो नहीं लगेगा ? ’’

आयशा ने कहा ’’ डर तो लगेगा जरूर, मगर डरने से काम चलनेवाला नहीं न। ’’

सौरभ ने कुटील मुस्कान भरकर कहा ’’ डरपोक कहीं की आओ हमलोग एक दुसरे में युं समा जाएं कि सारा डर ही खत्म हो जाए। ’’

थोड़ी सी न नुकूर और कसमसाने के बाद आयशा ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया और सौरभ के हवाले कर दिया।

तय दिन के मुताबिक आयशा बड़ी बेचैनी से सौरभ का इन्तजार करती रही , सौरभ के परिवार वालों से मिलने के सपने देखती रही, मगर सौरभ नहीं आया।

मुखौटा लगाए सौरभ का कहीं पता नहीं चला, कभी भी नहीं चला। 


समाप्त



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