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आपसी विश्वास

1 नवम्बर 2021

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दुखती नस पे किसी ने हाथ रख दिया था। गलती से नहीं बल्कि जान बुझकर, उसने जख्म को कुरेदने की सफल कोशिश की। वो तरस  खाकर नहीं रूका था, बल्कि अपने मन के कोने-कोने में दबी हुई बात को एक साथ उगलने के बाद वो रूका था। 

ऐसा कैसे कर जाते हैं लोग ? क्यों अपने जख्मों पे मरहम और दुसरे के जख्मों को कुरेदना चाहते हैं लोग ? इन्हीं सब सवालों से निर्मला उदास और परेशान थी। विस्तर पर औंधे मूँह लेटी हुई थी, तभी घड़ी ने चार बजाए। निर्मला के मन की सारी उदासी और बेचैनी दब चुकी थी। रोहन के आ जाने से पहले उसको हंसने-मुस्कराने और खुश रहने का नाटक जो करना था। रोहन को हमेशा हंसता-मुस्कराता चेहरा पसन्द था, वो कहा करता था ’’ बगैर मुस्कराए कया जीना। मुस्कराने की आदत डाल लो फिंकी ही सही। उदासी कभी पास नहीं फटकेगी। ’’

दरवाजा खोलने के साथ ही निर्मला हंसने मुस्कराने की प्रतिमान मूर्ति बनी खड़ी हो गयी, मगर ये क्या, रोहन तो आज खुद परेशान सा नजर आ रहा है, परेशान देखकर निर्मला ने भी हंसने-मुस्कराने वाले कलेवर को उतार फेंका ताकि ये हंसना-मुस्कराना रोहन के मन में कोई आग न लगा दे।

फ्रेश हो जाने के बाद, चाय की एक सीप लेकर निर्मला ने कहा ’’ पी के देखो, चाय कितनी कड़कदार और जाएकेदार बनी है। चाय भीतर और टेंशन बाहर। ’’ निर्मला जवाब के रियेक्शन के इन्तजार में बैठी हुई थी कि रोहन, उसको निहारने लगा। रोहन के चेहरे पर न तो शिकन और न आँखों में गुस्सा का ही कोई नामोनिशान था। जायज या नजायज गुस्सा तो झेला जा सकता है लेकिन अपरिचित की तरह देखना, निर्मला को नागवार गुजर रहा था। कुछ पल घुरने के बाद रोहन बिना चाय पीए ही उठ गया तो निर्मला भी अपनी चाय बगैर खत्म किए ही उठ गयी और बेडरूम में जाकर रोहन से पुछ बैठी ’’ आखिर बात क्या है, कुछ तो बताओगे ? ’’ रोहन बिना कोई जवाब दिए बगैर, करवट बदलकर लेट गया। ऐसा बेगानापन, निर्मला के मन-मस्तिष्क में कई तरह के सवालों को जन्म दे गया। निर्मला ने फिर कोशिश की और रोहन के मूँह के सामने आकर प्रश्न किया ’’ ए जी, बताइए न क्या बात है , हमको कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है, प्लीज जानू। ’’

पता नहीं तुम कहना या आप संबोधित करना रोहन को बुरा लगा, चलो जो भी हुआ हो, रोहन ने कहा ’’  अच्छा तो हमको भी नहीं लग रहा है, आपको भी मेरी कसम बताइए  कि क्या बात है ? ’’ जवाब के इन्तजार में रोहन निर्मला को घुरता रहा तो निर्मला इधर-उधर देखने लगी, दरअसल वो यह समझने का प्रयास कर रही थी कि आखिर रोहन को किस सवाल का जवाब चाहिए।

रोहन ने फिर कहा ’’ देखिए, पति और पत्नी के बीच में ऐसा नहीं होना संबंध पर असर डाल देता है। ’’ रोहन अपनी भौंहें उठा-उठा कर अपनी पत्नी के दिल में दफन राज को उगलवाने की कोशिश कर रहा था।

निर्मला ने आखिर पुछ ही लिया ’’ आखिर कौन सी बात ? मेरे मन में क्या छुपा हुआ महसूस कर रहे हैं आप ? हमको तो कुछ भी समझ नहीं आ रहास है। ’’

’’ देखो अन्जान मत बनो, अगर मैं अपने पे आ गया न तो तेरी बोलती बंद कर दुंगा। ’’ रोहन के इस झंूझलाहट वाली बात से निर्मला डर गयी थी क्योंकि इससे पहले उसने रोहन का यह रूप कभी नहीं देखा था।

रोहन ने कहा ’’ चलो तुम्हारी दिल में छुपी बात का मैं ही खुलास कर देता हूँ। तुम तो स्वार्थी और मतलबी हो। इस बात से निर्मला और भी थरथरा गयी।

रोहन ने अपना मोबाइल दिखाकर निर्मला से कहा ’’ देखो, पहचानती हो इस नम्बर को ? ’’

निर्मला ने मोबाइल में देखा 987............25 नं लिख हुआ था। निर्मला ने कहा ’’ ये नम्बर तो मेरे ध्यान में नहीं है। ’’ वो याद करने की कोशिश करने लगी तो रोहन ने निर्मला का मोबाईल लेकर सर्च किया और 987..........25 नं निकाल कर निर्मला को दिखकर पुछा ’’ अब याद आया कि और याद दिलाउं ? ये नम्बर विवेक का है। ’’

निर्मला, ब्लैक लिस्ट में डालने के बाद नम्बर तो भूल चुकी थी, मगर विवेक का नाम अपने पति की जुबान से सुनने के बाद उसके जख्म और हरे हो गए। रोहन ने कहा ’’ जैसी भी हो, मैं सिर्फ सच्चाई जानना चाहता हूँ। ’’

निर्मला ने कहना शुरू किया ’’ वो मेरा अतीत था और अब वर्तमान में भी डंसने की कोशिश कर रहा है। वो मुझे बीती हुई बात याद दिलाकर ब्लैकमेल कर रहा है, धमकी दी है कि पति को सारी बात बता दुंगा। ’’ निर्मला रोने लगी।

रोहन ने कहा ’’ हमको तो बता सकती थी, उसने फोन करके मुझसे भी सौदा करना चाहा है। ऐसा करो लो ये रूपए, उससे कहना कि ये तुम्हारे चुप रहने की कीमत है।

नियत समय और नियत स्थान पर विवेक पहले से ही मौजूद था। निर्मला को सामने देखकर विवेक बहूत खुश हुआ और उससे भी ज्यादा खुश रूपये हाथ में लेकर हुआ। विवेक एकटकर निर्मला को निहारे जा रहा था और मन ही मन रूपया कमाने के साधन पर खुश हो रहा था। तभी रोहन सामने आकर विवेक के हाथ में रूपया पकड़ाकर बोला ’’ लो रूपए, आज के बाद मेरी पत्नी को तंग मत करना। ’’ भौचक्का सा खड़ा विवेक इससे पहले कि कुछ समझ पाता पुलिस आ गई। विवेक ने भागने की कोशिश की और पकड़े जाने पर लड़खड़ाती आवाज में कहा ’’ सर, इनलोगों ने रूपया उधार लिया था, वही लौटाने आए थे। मैंने कुछ नहीं किया। ’’

पुलिस ने एक डण्डा जमाकर कहा ’’ पता है साले, तुमने कुछ नहीं किया है, अब जो भी करना है हमलोग करेेंगे। चल थाने वहीं उधार-नकद वसुल करेंगे। ’’

पुलिस विवेक को पकड़कर ले गयी।

समाप्त


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