shabd-logo

आँसू

3 नवम्बर 2021

28 बार देखा गया 28



समय भी कैसे-कैसे दुर्दिन दिखाता है। आज सुखवंती की ऐसी स्थिति हो गयी थी कि न तो भाग्य को कोस पा रही थी और न तो इतरा ही रही थी। कोई कितना भी बीते दिनों की यादों की चादर में खुद को गर्म रखने की कोशिश करे, मगर वर्तमान की मनःस्थिति की शीतलहरी, उस चादर को हटाकर सर्वस्व ठंडा कर डालती है।

सुखवंती अपने बीते दिनों में खो जाती थी, मगर कबतक ?

ऐसे ही अपनी यादों में खोयी सुखवंती, महेश के सामने खड़ी थी तो उसने कहा ’’ मेरी सुक्खो, मेरी हिम्मत नहीं है कि तुम्हारी आँखों में आँसू देख पाउं। ’’ सुखवंती और भी कूछ अच्छा महसूस कर रही थी कि पति ने एक मुक्का जमाया तो वो यादों से बाहर आयी, दुसरी शादी करने के बाद लात-घुसे और गंदी-भद्दी गालियाँ ही सुखवंती की जिन्दगी बन गई थी, उसकी आँखों से बहते आँसू को देखकर नवीन ने कहा ’’ तुम्हारी नकली आँसूओं से मैं पिघलने वाला नहीं। ’’

सुखवंती सोच रही थी कि पहले वाला पति आँखों में आँसू देखकर ही पीघल जाता था और दुसरा पति आँसू तो क्या खून के निकलने से भी न पीघले, सो अब खुद के आँसू को ही पीना होगा, सुखवंती ने गहरायी से सोचा और नवीन से पुछा ’’ क्या है जी ? ’’

’’ चल जुते-मौजे उतार। ’’

सुखवंती अब यह सोचने लगी कि मेरा झूकना कहीं गिरा न दे मुझको।


Rajeev kumar की अन्य किताबें

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

बहुत ही गहरा कटाक्ष करती हुई लघु कहानी।

14 नवम्बर 2021

1

आपसी विश्वास

1 नवम्बर 2021
2
1
2

<p><br></p> <p><br></p> <p>दुखती नस पे किसी ने हाथ रख दिया था। गलती से नहीं बल्कि जान बुझकर, उसने जख

2

सौतेली माँ

3 नवम्बर 2021
0
0
0

<p><br></p> <p>सौतेली माँ, राजू को ठीक उसी तरह टकटकी लगा कर देखती थी जैसे कि उसकी सगी माँ देख रही हो

3

जीद्द

3 नवम्बर 2021
0
0
0

<p><br></p> <p>अपनी छोटी से छोटी बात मनवा लेने की अभ्यस्त सोनाली, अपने पिता को याद कर आज रो पड़ी है,

4

आँसू

3 नवम्बर 2021
1
1
1

<p><br></p> <p><br></p> <p>समय भी कैसे-कैसे दुर्दिन दिखाता है। आज सुखवंती की ऐसी स्थिति हो गयी थी कि

5

दहलीज

3 नवम्बर 2021
1
1
1

<p>’’ हिदायत, धमकी और शर्म कुछ भी नहीं भूली हूँ मम्मी जी, सबकुछ याद है। गृहप्रवेश के समय से ही दहलीज

6

गृहस्त तप

24 फरवरी 2022
0
0
0

गृहस्त तप हिम क्षेत्र के स्वच्छ वातावरण में ठंडी-ठंडी, सांय-सांय सी सीटी बजाती हूई हवाएं, किसी का भी हाड़-माँस कंपकपा देने के लिए पर्याप्त है, उस नब्ज जमाने वाली ठं डमें तपस्वियों के कूल को मर्यादित

7

गृहस्त तप

24 फरवरी 2022
0
0
0

गृहस्त तप हिम क्षेत्र के स्वच्छ वातावरण में ठंडी-ठंडी, सांय-सांय सी सीटी बजाती हूई हवाएं, किसी का भी हाड़-माँस कंपकपा देने के लिए पर्याप्त है, उस नब्ज जमाने वाली ठं डमें तपस्वियों के कूल को मर्यादित

8

अइयास

2 जून 2022
0
0
0

सामने वाले का कोई भी जवाब न मिलने पर यह मान लेना कि मैं इग्नोर किया जा रहा हूँ, हमेशा अच्छा नहीं होता है। हो सकता है कि सामने वाला किसी कश्मकश में हो या हो सकता है कि ऐसा कुछ पुछ लिया गया हो, जिसका जव

9

महत्वकांक्षा

2 जून 2022
0
0
0

उदास होना आखिर क्या होता है ? मन का उदास हो जाना ? सपनों का उदास हो जाना ? इच्छाओं का उदास हो जाना या उम्मीदों का उदास हो जाना या फिर महत्वकांक्षा काक उदास हो जाना ?  नियति ने प्रभा  को ऐसे मोड़ पर ला

10

वो लेडी गाईड

2 जून 2022
0
0
0

हवाई जहाज से उतरते ही गर्म हवा का सामना होेने पर हवाई जहाज का वातानुकुलित कैबिन बड़ा ही खला। कार ड्राइवर अपनी-अपनी कम्पनियों का बैनर लिए टुरिस्ट के इन्तजार में स्वागत और आवाभगत के लिए खड़ा था।  अंडमा

11

छुपी असलीयत

3 अगस्त 2022
0
0
0

’चेहरे पे चेहरे लगे हैं, असलीयत पहचाने कौन, इसी मुखौटे लगे चेहरों की भीड़ में कोई मेरा भी राजकुमार होगा, जिसकी साँसों में बसकर उसकी साँसों में घूल आउंगी। आयशा ने ऐसा सोचा मगर उसके दिल में एक ख्याल आय

12

इन्तजार

3 अगस्त 2022
0
0
0

उग्र हुए सुर्यदेव का क्रोध शांत हो चुका था। आकाश का रंग नीला से लाल हो चुका था। आकाश की ओर देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे की लाल चादर पर काला और सफेद डिजाईन गतिशिल अवस्था में है, वो गतिशिल डि

13

भाई-भाई

3 अगस्त 2022
0
0
0

मिलन को बड़ा आतूर था चपल का परिवार। बँटवारे के बाद अपना-अपना हिस्सा ले कर अलग हुए दो भाई चपल और चंचल आज आँगन के बीच में खड़ी की गई दिवार को गिरा रहे हैं। दिवार का गिराया जाना आपसी मतभेद के खत्म होने क

14

कठपूतली

2 सितम्बर 2022
0
0
0

कठपूतली ’’ जीवन देना और जीवन लेना सब भगवान के हाथ में है, हमलोग तो कठपूतली हैं। ’’ रामनाथ जी सामाजिक-दार्शनिक भाषण में कह रहे थे। अपने भाषण को खत्म कर अभी कुर्सी पे विराजे ही थे कि उनके मोबाईल की घंट

15

सँावरा

2 सितम्बर 2022
0
0
0

सँावरा सँावरे ने प्रेम का ऐसा ताना-बाना बुना कि गोरी प्रेम जाल में फँस गई। साँवरे की बाँसुरी के धुन पे गोरी की पायल छन गई। गोरी के मुख की लालीमा और उसके हाथों की मेेंहदी का रंग एक सा नीखर आया था। बँ

16

रोजगार की चमक

3 सितम्बर 2022
0
0
0

र काली अंधेरी रात मंे चाँद का दर्शन उसके दिल को बड़ा शुकून दे गया। चाँदनी की रौशनी से उसके आस-पास प्रकाश फैल गया था। दिलोदिमाग का कोना-कोना दुधिया सी रौशनी में सराबोर था। काफी न नुकूर और बड़ी खुशामदी के

---

किताब पढ़िए