उदास होना आखिर क्या होता है ? मन का उदास हो जाना ? सपनों का उदास हो जाना ? इच्छाओं का उदास हो जाना या उम्मीदों का उदास हो जाना या फिर महत्वकांक्षा काक उदास हो जाना ?
नियति ने प्रभा को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा कर दिया था कि आज सूबह से वो इसी उधेरबून में घिरी थी, इन्ही सवालों में उलझी हुई थी। वो सोच नहीं पा रही थी कि आखिर ये उदासी के बादल अचानक क्यों मंडराए और क्यों ये उदासी के बादल मन-मस्तिष्क में घुमड़ कर रह गए, नयनों से बरसे क्यों नहीं ? कुछ तो मन हल्का हो जाता।
नतीजन प्रभा के सिर में घनीभूत पीड़ा छाई और वो नीद्रा देवी की गोद में पसर गई। जगदम्बा मंदिर के समीप खेतों के पास से गुजरे ढलान पर रास्ते में कच्ची सड़क पर प्रभा अपनी बकरियों को हाँक रही थी कि तभी उसको रास्ते पर मालती काकी खड़ी दिखी। वो मालती काकी को देखकर मुस्करा पड़ी, मगर प्रभा को मालती काकी के बदले हुस मिजाज का अनुभव थोड़ी ही देर बाद हो गया।
मालती काकी ने पुछा ’’ क्यों गेहूू तेरे बाप ने जने थे ? ’’ इतना पुछकर मालती काकी प्रभा को चढ़ी-कसी हुई आँखों से घुरने लगी।
मालती काकी के ऐसे सवालों की अभ्यस्त प्रभा ने अपने को संभालने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा ’’ नहीं काकी, गेहूं तो मेरे बाप ने नहीं बल्कि आपके नाना ने जने हैं, बताइए क्या बात है? ’’
आज प्रभा के मन में दबा गुस्से कार फव्वारा फट पड़ा। प्रभा का तना हुआ सीना और चढ़ी हुई आँख देखकर मालती काकी ने अपने कदम वापस ले लिए।
नीद्रा देवी की गोद में पसरे-पसरे ही प्रभा ने एक करवट ली और दुसरे सपने में खो गई।
’’ मैंने तुमसे कहा था न कि सुना है तुम कभी एक डाल पर नहीं बैठते, फुर्र से उड़ जाते हो, सब कुछ जानते हुए भी तुम्हारी बातों में आ गई, ऐसा तुमने क्यों किया विनय ? ’’ प्रभा खुद में बड़बड़ा रही थी, प्रभा की साँसे सामान्य हुई और फिर उसने बड़बड़ाना शुरू किया ’’ तुम्हारे प्यार में देखे सपनों का एहसास तो बहूत अच्छा रहा मगर सपने टूटने का दर्द सहन नहीं होता विनय। एक बार फिर से ठगने के बहाने ही सही, विनय सामने तो आओ, मैं विश्वास दिलाती हूँ कि कभी कोई शिकायत भी नहीं करूंगी। ’’
फिर प्रभा अचानक झटके से उठी, खिड़की से बाहर पसरी चाँदनी सुबह हो जाने का एहसास करा रही थी, देखा कि घड़ी 2ः30 बजा रही है। प्रभा ने गिलास में पानी डाला और एक गटक में गिलास खाली करके वो खुद में बोली ’’ नहीं दोबारा अब ठगाना नहीं। प्यार मोहब्बत को दुबारा समझने की कोशिश भी नहीं करूंगी। प्यार का सपना भले ही उदास हो गया हो, मगर महत्वकांक्षा का सपना कभी उदास नहीं होने दुंगी, कभी टूटने नहीं दुंगी।
सुबह उठते ही प्रभा ने अपनी माँ से साफ-साफ कह दिया ’’ देख माँ, आज से बकरियाँ चराने नहीं जाउंगी, बल्कि विद्यालय जाउंगी। ’’
समाप्त