उग्र हुए सुर्यदेव का क्रोध शांत हो चुका था। आकाश का रंग नीला से लाल हो चुका था। आकाश की ओर देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे की लाल चादर पर काला और सफेद डिजाईन गतिशिल अवस्था में है, वो गतिशिल डिजाईन पंक्षियों की कतार थी जौ ट्रेफिक नियमों का पालन कर लौट कर अपने धर जा रहे थे।
घर के आँगन में खेल रहे डब्बू और डबली अचानक झगड़ने लगे और कहने लगे ’’ अब मेरी बारी है, अब मेरी बारी है। ’’
उनकी मम्मी ने दोनों को अलग कर कहा ’’ जाओ हाथ-मुँह धोकर पढ़ने बैठो, तुम्हारे पापा आएंगे तो विद्यालय का गृहकाज करवा देंगे। ’’
बच्चों को पढ़ने के लिए बिठा कर, साँझ बाती देकर, सरला अपने पति के आने के इन्तजार में दरवाजे पर टकटकी लगाए बैठी रही।
आकाश में बादल उमड़ें और बादलों के टकराने की आवाज से सरला का मन उदास होने लगा, मन में कैसे-कैसे ख्याल आने लगे। रामदीन काका और बिमला काकी के घर जाकर, उनके अब तक न लौटने की खबर सुनाकर, सरला ज्योंहीं निकली कि मुसलाधार बारिश शुरू हो गई।
डब्बू और डबली, अब अपनी माँ के आने के इन्तजार में दरवाजे पर नज़र गड़ा बैठ गए। इधर बारिश में भींग चुकी सरला अब रोने लगी, सरला के आँसू बहे जा रहे थे कि अचानक पिछे से आवाज आई ’’ पगला गई है का, वहाँ बच्चांे को अकेला छोड़कर यहाँ भींग क्यों रही है ? ’’ सरला पिछे मुड़ी तो अपने पति को देखकर बहूत खुश हुई, सरला के मन में इन्द्रधनुंषी रंग बिखर गया।