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1 किताब
<p><br></p> <p><br></p> <p>दुखती नस पे किसी ने हाथ रख दिया था। गलती से नहीं बल्कि जान बुझकर, उसने जख
<p><br></p> <p>सौतेली माँ, राजू को ठीक उसी तरह टकटकी लगा कर देखती थी जैसे कि उसकी सगी माँ देख रही हो
<p><br></p> <p>अपनी छोटी से छोटी बात मनवा लेने की अभ्यस्त सोनाली, अपने पिता को याद कर आज रो पड़ी है,
<p><br></p> <p><br></p> <p>समय भी कैसे-कैसे दुर्दिन दिखाता है। आज सुखवंती की ऐसी स्थिति हो गयी थी कि
<p>’’ हिदायत, धमकी और शर्म कुछ भी नहीं भूली हूँ मम्मी जी, सबकुछ याद है। गृहप्रवेश के समय से ही दहलीज
गृहस्त तप हिम क्षेत्र के स्वच्छ वातावरण में ठंडी-ठंडी, सांय-सांय सी सीटी बजाती हूई हवाएं, किसी का भी हाड़-माँस कंपकपा देने के लिए पर्याप्त है, उस नब्ज जमाने वाली ठं डमें तपस्वियों के कूल को मर्यादित
सामने वाले का कोई भी जवाब न मिलने पर यह मान लेना कि मैं इग्नोर किया जा रहा हूँ, हमेशा अच्छा नहीं होता है। हो सकता है कि सामने वाला किसी कश्मकश में हो या हो सकता है कि ऐसा कुछ पुछ लिया गया हो, जिसका जव
उदास होना आखिर क्या होता है ? मन का उदास हो जाना ? सपनों का उदास हो जाना ? इच्छाओं का उदास हो जाना या उम्मीदों का उदास हो जाना या फिर महत्वकांक्षा काक उदास हो जाना ? नियति ने प्रभा को ऐसे मोड़ पर ला
हवाई जहाज से उतरते ही गर्म हवा का सामना होेने पर हवाई जहाज का वातानुकुलित कैबिन बड़ा ही खला। कार ड्राइवर अपनी-अपनी कम्पनियों का बैनर लिए टुरिस्ट के इन्तजार में स्वागत और आवाभगत के लिए खड़ा था। अंडमा
’चेहरे पे चेहरे लगे हैं, असलीयत पहचाने कौन, इसी मुखौटे लगे चेहरों की भीड़ में कोई मेरा भी राजकुमार होगा, जिसकी साँसों में बसकर उसकी साँसों में घूल आउंगी। आयशा ने ऐसा सोचा मगर उसके दिल में एक ख्याल आय
उग्र हुए सुर्यदेव का क्रोध शांत हो चुका था। आकाश का रंग नीला से लाल हो चुका था। आकाश की ओर देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे की लाल चादर पर काला और सफेद डिजाईन गतिशिल अवस्था में है, वो गतिशिल डि
मिलन को बड़ा आतूर था चपल का परिवार। बँटवारे के बाद अपना-अपना हिस्सा ले कर अलग हुए दो भाई चपल और चंचल आज आँगन के बीच में खड़ी की गई दिवार को गिरा रहे हैं। दिवार का गिराया जाना आपसी मतभेद के खत्म होने क
कठपूतली ’’ जीवन देना और जीवन लेना सब भगवान के हाथ में है, हमलोग तो कठपूतली हैं। ’’ रामनाथ जी सामाजिक-दार्शनिक भाषण में कह रहे थे। अपने भाषण को खत्म कर अभी कुर्सी पे विराजे ही थे कि उनके मोबाईल की घंट
सँावरा सँावरे ने प्रेम का ऐसा ताना-बाना बुना कि गोरी प्रेम जाल में फँस गई। साँवरे की बाँसुरी के धुन पे गोरी की पायल छन गई। गोरी के मुख की लालीमा और उसके हाथों की मेेंहदी का रंग एक सा नीखर आया था। बँ
र काली अंधेरी रात मंे चाँद का दर्शन उसके दिल को बड़ा शुकून दे गया। चाँदनी की रौशनी से उसके आस-पास प्रकाश फैल गया था। दिलोदिमाग का कोना-कोना दुधिया सी रौशनी में सराबोर था। काफी न नुकूर और बड़ी खुशामदी के