कठपूतली
’’ जीवन देना और जीवन लेना सब भगवान के हाथ में है, हमलोग तो कठपूतली हैं। ’’ रामनाथ जी सामाजिक-दार्शनिक भाषण में कह रहे थे। अपने भाषण को खत्म कर अभी कुर्सी पे विराजे ही थे कि उनके मोबाईल की घंटी बजी, नम्बर देखा तो सन्न रहे गए, ये तो वही नम्बर है जिस नम्बर से धमकी भरे फोन आ रहे हैं। इग्नोर करें कि रिसीव करें, बड़ी दुविधा में थे, कश्मकश की स्थिती में उन्होंने फोन उठा ही लिया, सामनेवाले ने फोन पे कहा ’’ स्वामी जी, भाषण तो बहूत अच्छा देते हैं, लेकिन फोन इग्नोर करना महापाप है। ’’
रामनाथ गोयंका जी ने सहम कर कहा ’’ क्यों करते हो ऐसा, भगवान के चरणों में खुद को झुका लो, तुम्हारा भला होगा। ’’
’’ भला-बुरा बाद में, पहले दस लाख रूपया देते हैं या आपकी डोर मैं लपेटूं, ज्यादा दुरी पे नहीं हैं आप। ’’ गोयंका जी ने देखा भीड़ से अलग हट कर किनारे में खड़ा है।
गायंका जी ने ’’ हरगीज नहीं ’’ बोलकर फोन काट दिया और साथी का वक्तव्य सुनने में तल्लीन हो गए। सारा डर-भय दरकिनार हो गया। श्रोतागण विचार गंगा में सराबोर थे कि अचानक गोली चल और भाषण देनले वाले को लगी। अफरा-तफरी मची, भागते-भागते गोली चलाने वाला सख्स दबोच लिया गया। जीवन दिया किसी ने, जीवन लिया किसी ने। सब भगवान के हाथ की कठपूतली हैं।