गृहस्त तप
हिम क्षेत्र के स्वच्छ वातावरण में ठंडी-ठंडी, सांय-सांय सी सीटी बजाती हूई हवाएं, किसी का भी हाड़-माँस कंपकपा देने के लिए पर्याप्त है, उस नब्ज जमाने वाली ठं डमें तपस्वियों के कूल को मर्यादित करते हुए पुज्य तपस्वी साधु मुक्तेश्वर जी महाराज, तपस्या में हरदम लीन रहते। देखने वालों के रोंगते खड़े हो जाते, आपस में वो लोग कानाफूसी करते ’’ सिद्धस्वरूप है, तपस्या में लीन हैं। ’’ एक दंपति ने तो यहाँ तक कह दिया कि ’’ ध्यानमग्न साधु बाबा जी का सम्पर्क इस दुनिया से टूट गया है। साधु बाबा ने प्रशंसा से कही बातें सुन ली और फूले नहीं समाए, खुद पे इतराए भी बहूत ज्यादा मगर अहंकारीे पद से थोड़ा कम।
संयोग से उनको शहर के भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाना पड़ गया। ध्यान लगाने और मन को नियंत्रित करने में अभ्यस्त मुक्तेश्वर बाबा वहाँ ध्यान लगाने में असमर्थ महसूस किया। उन्होंने अपने मित्र सिद्धेश्वर राय से पुछा ’’ इतने शोरगूल में भी आप ध्यान कैसे लगा लेते हैं आपका ज्ञान भंडार भी भरा पुरा है। ’’ सिद्धेश्वर राय थोड़ी देर पहले धर की पूजा अर्चना में लीन थे।
सिद्धेश्वर राय ने अपने मित्र मुक्तेश्वर बाबा की तरफ पैनी दृष्टि डाली और कहा ’’ बस अभयस्त हो गया हूँ, प्रारम्भ के दिनों में हिमालय के शांत वातावरण में ध्यान लगाने की चेष्टा की थी, मगर असफल रहा। घर की यादों को दरकिनार नहीं कर पाया और अब यहाँ ध्यान में घर-परिवार की बात बाधा नहीं पहूँचाती है। ’’
मुक्तेश्वर बाबा ने ठंडी आहें मरते हुए कहा ’’ असली ध्यान तो हिमालय के शांत वातावरण में नहीं बल्कि शोरगुल-कोलहल वाले स्थान पर हैं। ’’
मुक्तेश्वर बाबा ने गृहस्ती का सुख त्यागने का खेद व्यक्त किया और कवि सिद्धेश्वर राय ने गृहस्ती सुख न त्यागने पर प्रसन्नता जाहिर की।
राजीव कुमार
बोकारो, झारखण्ड 827012
9801001494
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