’’ हिदायत, धमकी और शर्म कुछ भी नहीं भूली हूँ मम्मी जी, सबकुछ याद है। गृहप्रवेश के समय से ही दहलीज शब्द सुनती जो आ रही हूँ। ’’ रिम्मो ने खुले आकाश की तरफ देखकर ठंडी साँस ली तो उसकी सास पार्वती को यह नागवार गुजरा। वो रिम्मो को एकटक निहारती रही, उसके हृदय में रूकी-अटकी हूई हवा ने हृदय को प्रदुषित कर दिया और अल्प समय के लिए उसके मन-मस्तिष्क में रूकी हुई हवा हावी हो गयी, जिसका स्पष्ट प्रकटीकरण पार्वती की गुस्से में लाल आँखें कर रही थी। अपनी तरफ उठ-बढ़ रहे हाथ को रोकते हुए रिम्मो ने कहा ’’ मम्मी जी, मैं इस घर की बहू भी हूँ अैर अब एक माँ भी हूँ और अपनी बेटी को खतरों से बचाने के लिए हजार बार दहलीज पार करूंगी। ’’ रिम्मो की आवाज कर्कश हो आयी थी। पास में खड़ी दो साल की मुन्नी अब भी सीसक रही थी।