सँावरा
सँावरे ने प्रेम का ऐसा ताना-बाना बुना कि गोरी प्रेम जाल में फँस गई। साँवरे की बाँसुरी के धुन पे गोरी की पायल छन गई। गोरी के मुख की लालीमा और उसके हाथों की मेेंहदी का रंग एक सा नीखर आया था।
बँासूरी से एक ही धुन निकली ’’ रसीया ने कैसी रासलीला रचाई, रामा दुहाई रे रामा दुहाई। ’’ पुरे वातावरण में फैल गया।
सँावरे की बाँसुरी की धुन पर गोरी इठलाती-मदमाती नृत्य करती। बाँहपाश में बँध कर प्रेमालाप करती। साँवरा और गोरी एक दुसरे की नयनों से मदीरापान कर रहे थे। साँसों की खुशबू से मस्ती में दोनों सराबोर थे।
सँावरे ने पुछा ’’ गोरी, तेरा रंग कब निखरता है। ’’
गोरी ने शरमा कर कहा ’’ जब आपका साँवरा रंग इस पर चढ़ता है। जी करता है कि मैं भी साँवरी हो जाउं। ’’
सँवरे ने कहा ’’ जब गोरी मेरे सामने है तो मुझे गोरा होने की क्या आवश्यकता है, मैं तो साँवरा ही भला।
गोरी और साँवरे ने एक स्वर में कहा ’’ एक दुसरे की आकर्षण से हमारी संगत बनी रहे।
उन प्रेमी जोड़े द्वारा कहे गए शब्द आज भी वादियों में गुंजते हैं।