सामने वाले का कोई भी जवाब न मिलने पर यह मान लेना कि मैं इग्नोर किया जा रहा हूँ, हमेशा अच्छा नहीं होता है। हो सकता है कि सामने वाला किसी कश्मकश में हो या हो सकता है कि ऐसा कुछ पुछ लिया गया हो, जिसका जवाब देना बहूत मुश्किल हो, यही सोचकर विवके ने अपना सवाल बदला और पुछा ’’ और बताओ स्वेता, सब कुछ ठीक है न, आजकल क्या चल रहा है ? ’’ इस प्रश्न ने श्वेता के दिलो दिमाग पर तीर सा असर किया। अभी जिस सवाल ने उसका कश्मकश में डाल रखा था और उसके मुँह सिल रखे थे, अब जवाब देना जरूरी था, सो उसने कहा ’’ हाँ, सब कुछ ठीक है, बस अभी बैठा-बैठी चल रहा है। तुम अपनी कहो। ’’
’’ मैं तो बिल्कूल ठीक हूँ, बहूत अच्छी तरह से कट रही है। ’’ विवके के दिमाग में फिर एक सवाल जन्मा, उसनें पुछा ’’ तुम तो ’’ हाथ हैण्डलूम ’’ में जाॅब कर रही थी, अच्छी खासी सैलरी भी मिल रही थी, फिर क्या हुआ ? ’’
श्वेता को लगा कि मेरे प्रति उसकी दिलचस्पी कहीं छुपी हुई बात उगलने पर कहीं मजबूर न कर दे। इसलिए उसने कहा ’’ कुछ और बात करते हैं। तुम्हारे बिकानेर वाले प्रोजेक्ट का क्या हुआ ? ’’
विवेक ने कहा ’’ उसमें तो लफड़ा हो गया और लगता नहीं है कि कभी वो प्रोजेक्ट पुरा होगा। ’’ विवेक के चेहरे पर नाउम्मीदी तैर गई।
श्वेता ने उसको ढाढस बंधाते हुए कहा ’’ निराश मत होओ विवेक, कोई न कोई रास्ता जरूर निकल जाएगा, अच्छा लफड़ा क्या था ? ’’
’’ अब कैसे बताउं तुम्हें, न ही सुनो तो ज्यादा अच्छा है। ’’ थोड़ी देर चुप रहने के बाद विवेक ने श्वेता को अपनी तरफ घुरता पाया और कहना शुरू किया ’’ उस प्रोजेक्ट में रूपयों की जरूरत आन पड़ी, फाइनेन्सर ने फाइनेन्स करने की एवज में बहूत बड़ी चीज माँगी थी। ’’
’’ हाई प्राफिट ? ’’
’’ नहीं, प्रोफिट देने के लिए तो मैं तैयार था, लेकिन वो अइयास किस्म का निकला, उसने एक लड़की की माँग कर दी। अब लड़की कहाँ से लाता, साला अइयास कहीं का। ’’ यह बोलते समय विवेक का सिर शरम से झुका था और उसकी नज़र नीची हो चमकीली फर्श पर फिसल रही थी। ’’
श्वेता ने उत्सुक्ता बढ़ी और उसने कहा ’’ मैंने तो सुना है कि इस काम के लिए 5000 रूपया बहूत हंै। ’’ श्वेता भी थोड़ी शरमा गई।
’’ नहीं उस अइयाश को सीधी साधी शरीफ लड़की चाहिए थी। मैंने तो स्पष्ट कह दिया कि नहीं करवाना है हमको काम, और मेरे 5000 रूपए वापस कर दो। तो फाइनेन्सर ने दाँत निपोर कर कहा ’’ 5000 रूपए तो लड़की को दे दिए और अब वो आज कल कर रही है। ’’
श्वेता ’’ कौन था वो ? ’’
विवेक- ’’ मयंक जोशी। ’’
श्वेता - ’’ मयंक जोशी, अच्छा दिखता कैसा था वो ? ’’
विवेक - ’’ मोटा सा तोंदूमल, अधगंजा सा। ’’
अब श्वेता को सारी बातें समझ में आने लगी थी, दोनों ही भुक्तभोगी थे।
श्वेता ने कहना शुरू किया ’’ वो तो ’’ हाथ हैण्डलूम ’’ का मालिक है और शायद वो लड़की मैं ही हूँ, लेकिन मैंने कोई 5000 रूपया नहीं लिया है। उसके इस प्रस्ताव पर दो तमाचा लगाया और नौकरी छोड़ कर चली आई। ’’ रामकहानी सुनाते वक्त श्वेता रो पड़ी थी। दिल का गुब्बारा बहूत जोर से फटा था।
विवेक ने कहा ’’ साॅरी। ’’
श्वेता तो वक्त चुप ही रही। विवेक को भी इस बात का बहूत अफसोस हुआ और उसने अपनी कम्पनी मंे श्वेता को नौकरी दे दी।
समाप्त