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चिपको आंदोलन

8 दिसम्बर 2024

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बर्ष 1972 ई. में पहाड़ी जिलों के जंगलों में पेड़ काटने शुरू हुए। पेड़ों की नाजायज कटाई की जा रही थी। गांववासियों को जंगलों की कटाई से बहुत दुख हुआ। वे पेड़ों से अपनी बहुत सारी जरूरतों को पूरा करते थे।
जंगलों की नाजायज कटाई को रोकने के लिए रैनी गांव की वासी गौरा देवी और उसके साथ 27 औरतें पेड़ों से लिपट गईं। उन्होंने सरकार द्वारा नियुक्त ठेकेदारों का डटकर विरोध किया। ठेकेदारों ने उन्हें पेड़ों से हटने के लिए कहा, लेकिन वे पेड़ों से दूर नहीं हटीं। ठेकेदारों ने उन्हें बंदूक से डराने की कोशिश की, लेकिन वे पेड़ों पर ही लिपटी रहीं। गौरा देवी की अगुवाई में आंदोलन शुरू किया गया। इस आंदोलन में रैनी गांव के वासियों ने उनका साथ दिया। यह आंदोलन काफी तेज था। इस आंदोलन को रोकने के लिए उन पर बंदूकें भी तानी गईं, लेकिन उन्होंने इसकी कोई परवाह न करते हुए इस आंदोलन को जारी रखा। कुछ पेड़ों के आगे जाकर खड़े हो गए। कुछ पेड़ों से लिपट गए, जिसके कारण पेड़ काटने वाले आगे नहीं बढ़ पाए। यह खबर अखबारों में भी छपी। यह खबर आग की तरह फैल गई। इस खबर को पढ़कर आस-पास के गांव वालों ने भी इस आंदोलन में उनका समर्थन किया। आस-पास के गांव वालों ने भी पेड़ों को बचाने के लिए ऐसा ही किया। पेड़ों को बचाने के लिए गौरा देवी और उसके साथ 27 औरतें लिपट गई थीं। इस आंदोलन को चिपको आंदोलन का नाम दिया गया। यह आंदोलन अहिंसा पर आधारित था। चिपको आंदोलन 26 मार्च 1974 में शुरू हुआ था। इस घटना को बीते हुए 50 वर्ष हो गए हैं। लेकिन आज भी इस घटना को चिपको आंदोलन के नाम से याद किया जाता है। चिपको आंदोलन को प्रेरणा स्रोत माना जाता है।

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रचनाएँ
मानव द्वारा प्रकृति का विनाश
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मानव जीवन में जंगल बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जंगल मानव की बहुत सी जरूरतों को पूरा करते हैं। जंगल बहुत सी लकड़ियां प्रदान करते हैं, जो हमारे अलग-अलग कामों के लिए उपयोग की जाती हैं। जैसे कि भोजन पकाने के लिए, फर्नीचर बनाने के लिए, कुर्सी-टेबल बनाने के लिए और कागज बनाने के लिए, और इसके सिवाय और भी अन्य उद्योगों के लिए उपयोग की जाती हैं। जंगल बरखा लाने में सहायक होते हैं, जिससे हवा का तापमान ठंडा रहता है। जंगल हमारे वातावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाने में मददगार साबित होते हैं। जंगल बहुत बड़ी मात्रा में हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और हवा में ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जो मानव और जानवरों को जीवित रखने में सहायक होती है। इसके बिना मानव और जानवरों का जीवन असंभव है। लेकिन यह सब जानते हुए भी मानव जंगलों की अंधाधुंध कटाई करता जा रहा है। तेजी से कम हो रहे जंगलों ने देश के जंगली जीवन पर बहुत बुरा असर डाला है। कई जंगली जीवों की प्रजातियों की गिनती बहुत कम हो गई है। कई प्रजातियां तो लुप्त हो चुकी हैं। यह बहुत ही गंभीर समस्या है, जो कुदरती वातावरण के संतुलन के लिए बहुत बुरी है। यह सिर्फ मानव के द्वारा लगातार पेड़ काटने की वजह से ही हुआ है। मानव के द्वारा कुदरत में बहुत ज्यादा दखलअंदाजी दी जाती है। अगर मानव अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ काटता है, तो उसे उसके बदले और पेड़ लगाने चाहिए। कुदरती वनस्पति मानव के लिए किसी अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित होती है। वनस्पति रकबा बढ़ाने और कुदरती वनस्पति को बचाने की सख्त ज़रूरत है। अधिक से अधिक पेड़ लगाने की और उनकी देखभाल करने की प्रेरणा दी जानी चाहिए। जंगल की खेती या फिर सामाजिक जंगलात उत्पादन को अपनाना चाहिए। नदियों, नहरों, दरियावों, सड़कों और रेल मार्गों के पास खाली जमीन पर दरख़्त लगाने चाहिए। अधिक से अधिक पेड़ लगाकर ही हम अपनी लकड़ी की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं और अपने वातावरण को साफ-सुथरा और शुद्ध रख सकते हैं।
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