राजस्थान में वनस्पति की बहुत कमी है। और वनस्पति कम होने के कारण राजस्थान के लोग पेड़ों की बहुत कद्र करते हैं और पेड़ों की पूजा करते हैं। राजस्थान में रहने वाले लोग खेजड़ी के पेड़ को ज्यादा पूजते हैं, क्योंकि खेजड़ी का पेड़ वनस्पति की कमी के कारण उनके लिए जीवन का आधार बना हुआ है। यहां के लोग खेजड़ी के पेड़ से अपनी थोड़ी जरूरतों को पूरा करते हैं, जैसे कि वे इस पेड़ की पत्तियों का उपयोग अपने पशुओं के चारे के लिए और कुछ ऐसी ही छोटी जरूरतों के लिए करते हैं।
खेजड़ी के पेड़ की रक्षा करना और इसकी पूजा करना बिश्नोई भाईचारे के धर्म से जुड़ा हुआ है, क्योंकि आज से कई साल पहले राजस्थान के मारवाड़ी इलाके के एक छोटे से गांव में एक औरत द्वारा इस पेड़ को काटे जाने पर विरोध किया गया था, जिसका नाम अमृता देवी बिश्नोई था। दरअसल बात यह थी कि जोधपुर के राजा अभ्यै सिंह को अपने नए महल के लिए लकड़ियों की जरूरत थी, तो राजा ने अपने सैनिकों को खेजड़ी के पेड़ की कटाई के लिए भेजा। जब सैनिक पेड़ काटने लगे, तो अमृता उस पेड़ से लिपट गई और उसकी तीन बेटियां भी पेड़ से लिपट गईं। उन्होंने भी अपनी मां का सहयोग दिया। सैनिकों ने उन्हें पेड़ से दूर होने को कहा, लेकिन वे पेड़ से लिपटी ही रहीं। सैनिकों ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद बिश्नोई भाईचारे ने सैनिकों का विरोध किया, और पेड़ों की सुरक्षा के लिए यह विरोध काफी हिंसकता से भर गया। राजा के सैनिकों ने बिश्नोई भाईचारे के 363 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस हिंसक विरोध को देखते हुए राजा ने खेजड़ी के पेड़ों को काटने का फैसला वापस ले लिया और इस पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी। और उसके बाद मारवाड़ी इलाके को जानवरों और पेड़ों के लिए सुरक्षित घोषित कर दिया। आज भी बिश्नोई भाईचारा पेड़ और जानवरों की रक्षा करने में सक्षम है। 1787 ई. के इस संघर्ष के बाद लोग वातावरण के प्रति जागरूक हो गए हैं।