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दहेज ... ये कैसा रिवाज है ! 2

17 सितम्बर 2022

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    सुधीर जी उस बीच दिन रात चिंता में डूबे रहते थे । अपने पति को इतना परेशान देखकर जया जी उन्हें हिम्मत देती और खुद एकांत में जाकर रोती थी । राधिका भी अपने मां - पिताजी को इतना परेशान देखकर उदास रहती थी । वह चाह कर भी नहीं कह सकती थी उनसे कि , मै दहेज लेने वाले लड़के से शादी नहीं करुंगी , क्योंकि उसे पता था कि इन सब का कोई फायदा नहीं होगा , और उसे ये बात जरूर सुनने को मिल जायेगी कि हमारे समाज में बेटियों को कुंवारी रखना अच्छा नहीं माना जाता है । 
    धीरे - धीरे ऐसे ही समय बीतता गया । राधिका की शादी भी हो गयी और वह अपने ससुराल चली गई । 

 कुछ दिन बाद

      सुधीर जी शादी के भीड़ - भाड़ से उबर चुके थे । ऐसे ही एक शाम वो अपनी पत्नी के साथ फुरसत में बैठ कर राधिका की शादी के बारे में बात कर रहे थे । वो कह रहे थे कि एक बेटी का बाप हूँ तो इतना परेशान हुआ उसकी शादी को लेकर । सोचों जिनकी तीन - चार बेटियां है उनको कितनी परेशानी होगी । राधिका के ही शादी में मेरी अभी तक की सारा जामा - पूँजी खत्म हो गयी । कुछ देर तक दोनो पति - पत्नी बेटियों के बारे मे बात करते रहें । बातों ही बात में जया जी सुधीर जी से कही — बेटियां किसी के भरोसे से पैदा नहीं होती है . . . वो अपना भाग्य खुद लिखवा कर अपने साथ लाती हैं । कभी देखा है आपने किसी के भी लड़की को कुंवारी । चाहे वो गरीब हो या अमीर । एक बेटी हो या चार - पाँच ।  
    सुधीर जी को अपनी पत्नी की इस बात में सच्चाई नजर आई । वो अपनी की इस को सहमती देते हुए बोले — हाँ बात तो तुम सही कह रही हो । अब अपनी राधिका को ही ले लो .... हम तो परेशान हो गए थे कि कैसे इतना कुछ करूंगा ? कोई साथ देने वाला ही नजर नहीं आ रहा था , लेकिन अचाक से हमारे रितेदार उस समय भगवान बन कर आ गए , हमारी मदद करने । उनसे जो पैसा लिए हैं , वो हम धीरे - धीरे करके दे देंगे । कम से कम व्याज तो नहीं देना पड़ेगा । 
     जया जी — हाँ सही कह रहे हो आप । इतना तो मदद मिल गया हमें । किसी और से लेते तो व्याज देने की भी चिंता होती । फिर उन्होंने सुधीर जी से खुश होते हुए कहा — अब तो हम दहेज दे दिये लेकिन कुछ ही सालों में लेने की भी बारी आयेगी । तब हम भी किसी भी प्रकार की कोई मरौवत नहीं करेंगे । ये वाली लाइन जया जी बड़ी गर्व से कहीं । 
      सुधीर जी अपनी पत्नी की मुहं से ये बात सुनकर दुःखी हो गए । उनकों अपनी पत्नी से उम्मीद नहीं थी । कम से कम अभी तो नहीं । वो अपने मन में सोचने लगे कि अभी कुछ ही दिन पहले इसने मुझे इतनी परेशानी में देखा है और खुद भी अकेले में रो - रोकर आँखे सुजा ली थी और अभी ऐसी बातें कर रही है । इतना जल्दी कोई कैसे भुल सकता है ये ! सुधीर जी यही सोचते हुए अपनी पत्नी से बोले — कैसी बातें कर रहीं हो तुम ? इतना जल्दी कैसे मेरी और अपनी परेशानी को भुल सकती हो ? हमें राधिका के शादी में हुई परेशानियों से तुम कुछ नहीं समझी ! क्या तुम्हें उसकी शादी करके कोई सीख नहीं मिली ? तुम चाहती हो कि , हमारे जैसे ही हमारी होने वाली बहु के माता - पिता भी मुस्किलों में पड़े ? 
    याद करों कैसे तुम भगवान से ये प्रार्थना करती थी कि हमें दहेज के लालचियों से पाला नहीं पड़े । अगर दहेज ले मांगें भी तो कम ही मांगे । जो हम आसानी से दे सके । 
     बताओं औरो से तुम ये उम्मीद रखती थी , चाहती थी कि वो तुम्हारे उम्मीद पर खरा उतरे । यही उम्मीद हमारे होने वाली बहु की माँ भी तो कर रही होगी ना ... बोलों ... क्या किसी के उम्मीद पर खरा उतर कर उसको खुश करना क्या गलत बात है ? 
    कई बार ऐसा भी होता है , नई - नवेली बहु ससुराल में आते ही लड़ाई - झगड़ा करना शुरु कर देती है और कुछ दिन बाद वो अपने पति के साथ अलग रहने लगती है । कभी किसी ने ये सोचा है , कि वो ऐसा क्यों करती है ? सिवाय उसकी बुराई निकाले की ! 
     मैं बताता हूं तुम्हें ... मुझे जो लगता है . . . । 
फिर सुधीर जी बताना शुरू किये — ये जो दहेज है ना एक बेटी के बाप और भाई को कुछ भी करने पर मजबूर कर देता है . . . वो अपनी बहन - बेटि की खुशी के खातीर अपनी इज्जत की भी परवाह नहीं करते है । जहाँ वो कभी नहीं जाना पसंद नहीं करते हैं . . . कभी - कभी उन्हें वहां भी जाना पड़ता है अपनी बेटी के खातिर । कितने पिताओं को तो गालीयां और कितने धक्के खाने पड़ते है ।
     अब तुम्ही बताओं जब उस पिता की बेटी ये सब जाने और सुनेगी तो उसपर क्या गुजरेगी ? क्या वो अपने ससुराल वालों पर खुश होगी ? तब क्या वो शादी के बाद उन्हें वो प्यार देगी ... जो वो उससे उम्मीद लगाये होते है ?
नहीं ना । वो लड़की ससुराल में आते ही अपने पिता की बेइज्जती की बदला लेती है । उनसे उनके बेटे को दूर कर के । हालिकं ऐसा कुछ ही लड़कियां करती है । 
क्या तुम भी यही चाहती हो ? बताओं .... 
      जया जी तो सुधीर जी से इतनी गहरी बाते सुनकर रोने लगी थी । उन्होंने रोते हुए कहां — आप सही कह रहे हो जी , हम अपने बेटों को अपने से दूर नहीं जाने देगें और उनकी शादी बिना दहेज लिए ही करेंगे । 
       मैं ही मुंख थी जो इतनी जल्दी अपनी आपबीती भूल गई । 
        ये दहेज सच में परिवारों को नीचोड़ कर रख दे रहा है और ऊपर से दो परिवारों में मनमुटाव भी पैदा कर देता है । 
     सुधीर जी अपनी पत्नी की आंसू पोछते हुए बोले — अरे ... अरे .. तुम रोओं नहीं ... हम तो एक अच्छे काम की शुरुआत करने जा रहे हैं । जिससे शायद लोगों को कुछ समझ आये और वो भी अपने इस देहेज लेने के विचार को छोड़ दे । 




                           समाप्त

          
      आप सबसे विनती है जो भी दहेज लेने वालों में से हैं . . . Plz इसे बंद करे और दहेज मुक्त सामाज बनाये ।
     पहली शुरुआत स्वयं से करे क्योंकि अच्छे कामों की शुरुआत खुद से करनी चाहिए और आप भी ये अच्छा काम कर सकते हो । 🙏🏻😊
      



ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

बिल्कुल ..अभिशप्त रहा है ये समाज दहेज नामक कोढ़ से , बहुत बढ़िया संदेश 👌👌

17 सितम्बर 2022

रिया सिंह सिकरवार " अनामिका "

रिया सिंह सिकरवार " अनामिका "

19 सितम्बर 2022

जी सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏🏻🙂

Ankita

Ankita

Nice

17 सितम्बर 2022

Ankita

Ankita

Nice

17 सितम्बर 2022

17 सितम्बर 2022

Ankita

Ankita

Bilkul sahi likha haapne

17 सितम्बर 2022

Back Bencher

Back Bencher

Bilkul shi bat👌👌👌

17 सितम्बर 2022

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रचनाएँ
दहेज ... ये कैसा रिवाज है . . .
5.0
        सुधीर जी अपनी बेटी राधिका की शादी को लेकर हमेशा चिंतित रहा करते थे । वो पेशे से एक सरकारी टिचर थे । वो अपने परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहा करते थे । सुधीर जी के परिवार में उनकों लेकर कुल पाँच  सदस्य रहा करते थे । वो उनकी पत्नी जया जी और तीन बच्चें ।

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