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दर्द

5 अक्टूबर 2016

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एक वो दशरथ माँझी था,जो प्रेम को शक्ति के रूप में संचित कर पहाड़ की छाती को चीरकर रास्ता बनाया। सच कहूँ तो प्यार में बहुत ताक़त होता क्योंकि पूरी धरा प्यार की धुरी पर ही टिकी हुई है। लेकिन इस दुनियां में कुछ तथाकथित ऐसे भी लोग हैं जो निर्जीव हो गए हैं उन्हें ज़मीन से जुड़ें लोग कीड़े मकोड़े की तरह दिखाई देते हैं। उनका दुःख दर्द, यातना, अवहेलना, आँसू,भूख,प्यास,बीमारी आदि कुछ भी नहीं दिखाई देता।क्योंकि इनकी आँखें खोलवानी पड़ेगी। शायद इनकी आँखों पर एक मोटा काई जम गया है और ये काई सिर्फ आँखों में ही नहीं बल्कि पूरे शरीर और दिमाग़ पर जम गयी है। जिस तरह कुछ वायरस निर्जीव अवस्था में पड़े रहते हैं,और उनके अनुकूल जैसे ही वातावरण होता है वह सजीव अवस्था में आ जातें हैं। ठीक उसी प्रकार ये तथाकथित लोग जब तक उनके अनुकूल वातावरण न हो वह सजीव अवस्था में आते ही नहीं हैं। ये परपोषी हैं जब ये सजीव अवस्था में आ जातें हैं तो ये अपना भोजन ज़मीन से जुड़े लोगों से प्राप्त करते हैं। ये परपोषी उनकें दुःख दर्द की परवाह किए बिना ही उनकों अपने भोजन का शिकार बनाते हैं, और इस तरह चारों तरफ से सिर्फ चीखें सुनायीं देतीं हैं- बचाओ,छोड़ दो,मत मारो, भूख लगी, पानी दो ,रोटी दो ,कपड़े दो आदि।

ऐसी ही चीखें पता नहीं कितनी रोज़ सुनाई देती हैं लेकिन हवा की वेग तेज होने के कारण शायद वह आवाज़ सुनाई नहीं देती है। ऐसे ही दो तीन दिन पहले अकाल की चोट खाया हुआ 'कालाहांडी ' का माँझी का क्रंदन सुनाई दिया। वह अपनी मरी पत्नी की लाश कंधे पर लेकर 12 किलोमीटर दूर अंतिम संस्कार करने पैदल ही चल दिया। उसके साथ 12 साल की एक छोटी बच्ची भी थी जो उसके साथ चल रही थी। माँझी अपने कंधे पर सिर्फ एक लाश लेकर नहीं चल रहा था बल्कि सदियों से कुचली आती हुई जनता का लाश लेकर चल रहा था जिसकी मृत्यु अकाल,भूख,प्यास,बेरोज़गारी, ग़रीबी आदि से हो गयी थी और इसी तरह रोज ये परपोषी पता नहीं कितनों को रोज़ अपना शिकार बनातें हैं। माँझी की बच्ची सिर्फ वो बच्ची नहीं है बल्कि वह एक भविष्य है लेकिन इन परपोषियों की बढ़ती जनसख्या के कारण रोज भविष्य अंधकार की गर्त में जा रहा हैं। अच्छे दिन आ गए। अब कोई इन परपोषियों के हाथों मारा नहीं जायेगा। उनका समाज भी उन्हीं के अनुसार चलता है। और मांझी जैसे पता नहीं कितनों की रोज क्रंदन सुनाई देता है और अंततः हम परपोषियों की शिकार होने के लिए पैदा हुए है।


नोटः

1- ज़मीन से जुड़े लोग का मतलब है भूखी जनता जो रोज व्यवस्था की शिकार हो रही है।

2- तथाकथित लोग का मतलब कुछ ऐसे पूँजीपति तथा राजनेता जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए गरीब का शिकार बनाते हैं।

3- निर्जीव होने का मतलब यह है कि व्यवस्था में बैठे लोग जनता के कल्याण के बारे थोड़ा भी विचार नहीं करते हैं

3- काई जमने का मतलब कुछ दिखाई नहीं देना।

4- यहाँ परपोषी का मतलब उन लोगों से है जो सत्ता की आड़ में या पैसे की बदौलत रोज भूखी जनता का शिकार करते हैं।

5- अनुकूल वातावरण के अनुसार सजीव होने का अर्थ यहाँ पर यह है कि उन नेताओं से है। जो चुनाव के समय सक्रिय हो जाते हैं।

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