1 मई 2015
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कवि परिचय-नाम-वैभव दुबेउपनाम-वैभव"विशेष"जन्मतिथि-20-01-1990निवासी-कानपुर , कार्यक्षेत्र-बी.एच.ई.एल.झाँसी,उत्तर प्रदेशरचनाएँ-कहानी व कविताएँ।झाँसी,बबीना में आयोजित अनेक काव्य संगोष्ठियों में हिस्सा।विशेष-आकाशवाणी झाँसी केंद्र पर प्रसारित रचनाएँ।भेल कम्पनी में आयोजित प्रतियोगिताओं-निबंध,कहानी व स्लोगन में प्रथम व द्वितीय पुरुस्कार दो वर्षों से प्राप्त हो रहा है।कविता की मुख्य विधा-कविता और ग़ज़ल,D
प्रिय वैभव जी , सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ..
16 मई 2015
प्रिय मित्र , आपकी इस उत्क्रष्ट रचना को शब्दनगरी के फ़ेसबुक , ट्विट्टर एवं गूगल प्लस पेज पर भी प्रकाशित किया गया है । नीचे दिये लिंक्स मे आप अपने पोस्ट देख सकते है - https://plus.google.com/+ShabdanagariIn/posts https://www.facebook.com/shabdanagari https://twitter.com/shabdanagari - प्रियंका शब्दनगरी संगठन
5 मई 2015
वैभव जी , आपकी सभी रचनाएँ पढ़ी | सभी एक से बढ़कर एक है , समाज के अनछुए पहलु को भी आपकी लेखनी ने छुआ है | ऐसे ही कलम को धारदार बनाये रखिये | बहुत -बहुत शुक्रिया संगठन और हमसे जुड़ने के लिए |
2 मई 2015
वक़्त की आँधियों में बुझ न जाए ये दिया। हम देश के भविष्य हैं हमारा भविष्य क्या....सुंदर कविता....आभार !
2 मई 2015
बिल्कुल सत्यता का बखान किया है आपने दूबे जी किंतु यह भी सच्चाई है कि समा्ज सुधार के लिए योगदान मिलना कठिन है और धार्मिक काम के लिुए बहुत ही आसान- बहुत अच्छी रचना
2 मई 2015
माना की कपड़े गंदे मगर हर एहसास रखते है। नहला कर देखो प्यार की बारिश में हम दिल साफ़ रखते हैं। मंदिर में नारियल मजार पर चादर चढाते हो। गुरूद्वारे में धन और गिरजाघर में मोम जलाते हो। धर्म के नाम पर होते यहाँ हर रोज चंदे हैं। कभी हम पर भी नजर डालो हम उसी के बन्दे हैं।...............बहुत सही बात ... सुन्दर रचना के लिए अनेकानेक बधाइयाँ वैभव दुबे जी
1 मई 2015