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सत्य और सत मे एक मूलभूत अंतर है, सत्य सदा तात्कालिक रूप से परिभाषित होता है। जबकि सत सदा सर्व कालिक रूप से परिभाषित होता है। आवश्यक नही कि सत्य सत हो ही, किन्तु सत सदा सत्य ही होता है। सत्य की सीमाए व
कृष्ण अर्थात कुछ नही , किसी का नही, परन्तु सब मे समाहित सबसे सम्मोहित, काला कृष्ण नाम हो या वर्ण यथाकि उसमे कुछ नही, कुछ नही होन ही क्या कृष्ण होता है? संभवतः। वही श्वेत सभी तो है उसमे सभी वर्णो की
विकासशील शब्द बडा च्यारा है, सत्तारूढ से विपक्षियो तक सबका राजदुलारा है, सत्तारूढ देश को विकासशील बताते है, विपक्षी सत्तारूढ को विकासशील बताते है। जनता बेचारी न विकास देख पा रही है ना
प्रगतिशील लोग हमे प्रगतिशील कहते है, और हम शील छोड प्रगति की ओर वढते है. बात सच भी है, प्रगति पहले शील बाव मे है , ध्यान यह रखना होगा कही शील की परगति ना हो जाए . कुछ लोग अलग सोचते है शील