तमासा बन गयी है जिंदिगी बस आपा-धापी में |
वक्त बिता ही जाता है पर ओ आयेगे नहीं दिल में ||
तमासा ओ बने, मै सदमे तक अपने को ले जाऊ|
नहीं ये आरजू मेरे, तमासा खुद मै बन जाऊ ||
नहीं है दोष् उनका कुछ, मुझे मालूम है दिल से
मै था बहुत ही अनजान, और मजबूर कुछ दिल से ||
मेरी फितरत नहीं की मै किसी को ठेस पहुचाऊ|
मेरी आदत नहीं की मै किसी को दुःख तक ले जाऊ ||
बात छोडो तमासे की मेरा तो अपना भी घर है |
जलाऊ क्यों किसी का दिल, मेरा अपना भी एक दिल है ||
मझे ये याद है कि रास्ता मेरा कहा पर है|
तमासा क्यों बनाऊ जिन्दगी पूरी पड़ी तो है ||
मुझे एहसास ये भी है की उनका अपना जीवन है|
कौन होता हूँ मै कि बोलू तुमको एसे जीना है ||
ये उनकी सादगी थी कि, उन्हों ने सुन लिया मुझको |
दिलो की बात रखनी थी, तमासा क्यों बनाऊ मै ||