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डायरी दिनांक १७/११/२०२२

17 नवम्बर 2022

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डायरी दिनांक १७/११/२०२२

  सुबह के सात बज रहे हैं।

  मुझे ध्यान है कि जब बाबूजी ने सिरसागंज में मकान बनबाना आरंभ किया था, उस समय वहां की गली कच्ची थी। आस पास ज्यादातर घर या तो कच्चे थे अथवा आधे कच्चे थे। किसी की दीवारें प्लास्टर का इंतजार कर रही थीं तो कुछ घरों में पक्के फर्श का भी अभाव था। कुछ घरों में शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव था। थोड़ी ही दूरी पर कृषि योग्य भूमि के आधिक्य के कारण जिन घरों में शौचालय था भी, वे भी शौचालय बहुत कम प्रयोग करते थे। पानी समय से आता था तथा पानी के संग्रह के लिये टंकी जैसी व्यवस्था किसी भी घर में न थी। तो मात्र शौच के लिये चार पांच लीटर जल प्रवाहित कर देना, उन लोगों के अनुसार मूर्खता ही अधिक थी।

  यों तो उन लोगों में सभी वर्ग के लोग थे पर काष्ठकार वर्ग के लोगों के बहुत सारे घर थे। इन लोगों की जीवन शैली कुछ अलग ही थी। शायद ही कोई दिन होता जबकि किसी न किसी घर से झगड़े की आवाजें न आतीं। सास - बहू का झगड़ा, ननद - भाभी का झगड़ा, पिता - पुत्र का झगड़ा, भाई - भाई का झगड़ा, माॅ - बेटी के मध्य झगड़ा, पड़ोसी बंधुओं से झगड़ा, ये तो सामान्य बातें थीं। अनोखी बात थी - घूंघट कर बहू द्वारा अपने ससुर से झगड़ा करना अथवा छोटे भाई की पत्नी का अपने जेठ से झगड़ा करना। शायद घूंघट की ओट से शव्दों की तीव्रता मिट जाती होगी। अथवा संभावना यह भी थी कि वे सभी इन तीव्र शव्दों को बोलने और सुनने के आदी हों। क्योंकि इन झगड़ों के बाद भी उनके व्यवहार चलते रहते थे। सुबह एक दूसरे को गालियों से सम्मानित करने बाले लोग शाम तक साथ साथ वार्तालाप करते दिखाई देते। हालांकि धीरे धीरे उन लोगों के व्यवहार में बहुत परिवर्तन आया। आज भी वे परिवार वहीं रहते हैं पर अब उस तरह की बातें नहीं होती हैं।

  दूसरी मजेदार बात थी कि उन्हें आपसी झगड़ों में किसी अन्य की दखलंदाजी पसंद न थी। आपस में लड़ झगड़कर वे शांत हो जाते पर किसी अन्य का बीच बचाव उन्हें कभी बर्दाश्त न था।

  मजदूरों और राज से छेड़छाड़ और हंसी ठिठोली करना उन महिलाओं का रोज का काम था। शायद वे खुद व खुद सभी की भाभी बनने को तैयार रहतीं। तथा भाभी देवर के बीच यदि नौंक झौंक न हो, ऐसा कैसे संभव है। उसपर भी फागुन का महीना तो होली का महीना होता है। कभी कोई स्त्री मजदूरों के औजार छीनकर पानी के टैंक में फैंक देती तो काम करते किसी मजदूर की पीठ पर कीचड़ फेंक जाती।

  होली बाले दिन श्रमिकों ने काम से अवकाश रखा। पर हमारे टैंक का पानी रंग से बुरी तरह लाल हो गया था। अच्छी बात थी कि पानी में रंग ही डाला था। अन्यथा उन लोगों के मनोरंजन के स्तर को देखते हुए कुछ भी कहना कठिन ही था।

अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।

  

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