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डायरी दिनांक २८/११/२०२२

28 नवम्बर 2022

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डायरी दिनांक २८/११/२०२२


  शाम के छह बजकर पच्चीस मिनट हो रहे हैं ।


  कल बेसाब ताऊजी के बारे में लिखना आरंभ किया था। आरंभ में तो ताऊजी कितने ही साल सिरसागंज के मकान में रहे। इस बीच उन्होंने अपनी वणिक बुद्धि का प्रयोग आवासीय प्लाटों के खरीदने और बेचने में भी किया। इस धन्धे में ज्यादातर सभी को लाभ ही होता है। प्रोपर्टी की दरें हमेशा बैंक, डाकखाने की जमा योजनाओं तथा और भी दूसरी निवेश योजनाओं से अधिक बढती हैं। यदि पैसा हो तो प्रोपर्टी में निवेश करना हमेशा ही सबसे अच्छा माना जाता है। पर ताऊजी को उस व्यापार में कोई सफलता मिली, मुझे नहीं लगता। ताऊजी बहुत ज्यादा सीधे थे। फिर किसी के भी दुख को देख अति शीघ्र द्रवित हो जाते थे। संपत्ति वृद्धि की लिये खरीदा प्लाट अनायास ही किसी को बहुत जायज दरों पर बेच दिया करते थे।


  संभवतः ताऊजी ऊपर से जितने संयमित थे, भीतर से उतने ही अधिक व्यथित थे। ताऊजी की वह व्यथा मुझे आज अधिक स्पष्ट रूप से समझ में आती है।


  फिर ताऊजी के छोटे भाई का परिवार उनके साथ सिरसागंज में रहने आ गया। ताऊजी के छोटे भाई कोई भी काम नहीं करते थे। उनके परिवार का सारा खर्च ताऊजी ही चला रहे थे। इसमें उन्हें अधिक परेशानी भी नहीं थी। पर पुरुष को घर पर खाली नहीं बैठना चाहिये। यही सोचकर उन्होंने अपने छोटे भाई को कितने ही कामों पर लगाया। पर पढे लिखे इंटर कालेज के गणित प्रवक्ता में जो हेकड़ी न थी, उनके भाई में उस हेकड़ी का अभाव न था। कोई भी व्यापारी किसी को नौकरी देता है तो उससे काम की आशा तो रखता ही है जिसपर खरा उतरना  बेसाब ताऊजी के भाई के लिये आसान न था।


   ताऊजी के छोटे भाई की पत्नी वैसे तो फूहड़ ही थी पर उस समय के हिसाब से थोड़ा ज्यादा मोर्डन बनकर दिखाती थी। वह वास्तव में आधुनिक थी अथवा वह ताऊजी को आकर्षित करने का प्रयास करती थी (जिसमें उसके पति की भी मूक सहमति थी, ताकि ऐसा करने पर ताऊजी की कमाई उनके हाथ में जाती रहे) कहा नहीं जा सकता। उस स्त्री के चरित्र पर तो मुझे अधिक विश्वास नहीं है, पर मुझे लगता है कि शायद ताऊजी का उसके साथ कोई गलत संबंध नहीं था। अथवा संभव यह भी है कि मेरा विचार गलत हो। एकाकी मनुष्य कभी भी बहक सकता है। इन सबके उपरांत भी ताऊजी बहक गये थे, ऐसी मान्यता पर मुझे विश्वास नहीं है।


  शायद ताऊजी बहके नहीं थे पर वह अपने भाई की पत्नी को अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्र देखने के विरोधी न थे। इसीलिये वह आसानी ने अपनी बधू से बात कर लेते थे। यह लोकापवाद का बड़ा कारण हो गया। अच्छी बातें छिपी रहती हैं। पर जिन बातों से किसी के मान का मर्दन होता हो, उन बातों को बढने से कोई नहीं रोक सकता है।

  उसके बाद ताऊजी के जीवन में ऐसी ऐसी घटनाएं घटित हुईं जिनपर विश्वास करना किसी के लिये भी आसान नहीं होगा। उन घटनाओं का वर्णन कल की डायरी में करना चाहूंगा।

  अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम ।


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