डायरी दिनांक २९/११/२०२२
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कल बेसाब ताऊ जी की जिन बातों से डायरी का समापन किया था, उसके आगे की बातें आज लिख रहा हूँ।
उस समय तक मेरी आयु इतनी हो चुकी थी कि मैं कुछ न कुछ अनुमान लगा सकता था।हालांकि मेरे अनुमानों में सत्यता का पुट कितना रहा होगा, यह जांचने का मेरे पास कोई पैमाना नहीं था। ताऊजी के विषय में मेरी राय पूर्ववत ही अच्छी थी। संभवतः बाबूजी और मम्मी के विचार भी उनके लिये अच्छे ही थे। हालांकि बेसाब ताऊजी का हमारे घर मेरे बचपन से ही आना जाना था, पर उन दिनों उनका आना जाना अधिक बढ गया। उनके वार्तालाप से मुझे यही लगा कि छोटे भाई को स्नेह के कारण वह जाने से कह भी नहीं पा रहे हैं। तथा उसके यहां रहने से बेबजह लोकापवाद भी बढ रहा है। उन्हें सही मार्ग समझ में नहीं आ रहा है।
उसी समय मुझे ज्ञात हुआ कि उनके छोटे भाई उनके सौतेले भाई हैं। सौतेली माता के स्नेहाभाव के बाद भी वह तो पढ लिख गये ।जबकि सगी माता के स्नेहाधिक्य के कारण छोटे भाई का कभी पढाई में मन ही नहीं लगा। अब काम में भी मन नहीं लगता। इससे पहले भी ताऊजी ने छोटे भाई को मुरादाबाद में दुकान खुलबायी थी जो चली नहीं। चलती तो तब जबकि उस दुकान पर कोई बैठता।
ताऊजी अपने छोटे भाई और उसके परिवार को किस प्रकार झेल रहे थे, इसकी कल्पना करना भी आसान नहीं लगता। अक्सर मनुष्य सक्षम होने पर अपने पुराने द्वेष निकालता है। उस समय की परिस्थिति में ताऊजी ही सक्षम थे तथा उनका भाई पूरी तरह अक्षम। बचपन में कुमाता द्वारा किये गये द्वेषपूर्ण आचरण का प्रतिफल देने का उनके पास भरपूर मौका था। पर वह खुद उस मौके का फायदा उठाने से बचते रहे। ऐसा व्यवहार किसी भी मनुष्य के लिये कभी भी आसान नहीं होता। अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि मेरे लिये तो कभी भी आसान नहीं रहा। पुरानी बातों को भुला पाना मेरे लिये संभव नहीं है। पुरानी से भी पुरानी चोट मुझे आज भी तकलीफ देती हैं। मैं भले ही किसी के साथ दुर्व्यवहार न करूं पर जिन्होंने भी कभी भी मेरे साथ दुर्व्यवहार किया है, उनके साथ ऐसा सद्व्यवहार तो कभी नहीं कर सकता।
बेसाब ताऊजी के जीवन के आगे के संस्मरण और भी अधिक चकित करने बाले हैं। उनके विषय में मैं कल लिखूंगा ।आप सभी को राम राम ।