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डायरी दिनांक २५/११/२०२२

25 नवम्बर 2022

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डायरी दिनांक २५/११/२०२२

  शाम के छह बजकर बीस मिनट हो रहे हैं ।

  कल की डायरी में बिटोला दाई के विषय में बताया था। भारतीय समाज में आज कल ऊंच नीच की बातें बहुत कम रह गयी हैं। पर मेरे बचपन के समय में ऐसी घटनाएं नित्य देखने को मिलती थीं जबकि यदि कोई छोटी जाति बाले से किसी बड़ी जाति बाले का स्पर्श हो जाये, तब वह अपने ऊपर गंगाजल छिड़कता था। हाॅ। उस समय तक भी कुछ विद्रोही जन्म ले चुके थे जो खुद व खुद किसी न किसी बहाने से ऊंची जाति बालों को स्पर्श करने से न रुकते थे। वैसे अधिकांश तो डरे सहमे प्रवृत्ति के ही लोग थे। तथा उनके डर का प्रमुख कारण उनकी दयनीय आर्थिक स्थिति ही थी। कोई भी अपनी रोजी रोटी में व्यवधान नहीं चाहता। 

   बिटोला दाई थी। कितनी स्त्रियों को उसने मात्रत्व सुख दिया। पर वह खुद उस सुख से बंचित थी। 

  क्या बड़े, संपन्न और ऊंची जाति के परिवारों में निकृष्ट कार्य नहीं होते। निश्चित ही होते हैं। हालांकि उनमें से ज्यादातर छिपा दिये जाते हैं। 

  आचरणहीनता के परिणामस्वरूप ठहरे गर्भ भी बिटोला जैसी दाइयों की आय के प्रमुख साधन थे। उन दिनों गर्भनाशक दवाइयों का अभाव था। तथा अबांछित गर्भ को गिरा देना ही एकमात्र उपाय था। 

  बिटोला को इस काम में अनीति लगती थी या नहीं, कहा नहीं जा सकता। पर यह भी सत्य है कि बिटोला के मन में कुछ पाप भय अवश्य था। तथा खुद की निःसंतानता का कारण भी वही इन्हीं बातों को मानती थी। हालांकि अच्छी कमाई बाले इस काम को मना कर पाने का उसका कभी साहस नहीं हुआ। 

  एक दिन बिटोला के भी भाग्य का उदय हुआ जबकि उसने ऐसी ही गर्भिणी स्त्री का गर्भपात करने से मना कर दिया। साथ ही उस स्त्री को वचन दे दिया कि उसकी संतान को यदि वह स्त्री नहीं पाल सकी तो वह खुद उसे अपनाएगी। 

  निश्चित ही आचरण हीनता के परिणाम से उत्पन्न बच्चे को अपना पाने का साहस उस स्त्री का न था। संभवतः उसके बाद भी उस स्त्री ने अन्य दाइयों से संपर्क किया पर समय अधिक हो जाने से गर्भपात संभव न था। इस तरह ईश्वर की कृपा से बिटोला को उस स्त्री के लड़के का पालन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

  यह रहस्य कि बिटोला ने जिस बेटे को गोद लिया है, वह वास्तव में किसका पुत्र है, कभी भी संसार के सामने नहीं आ पाया। यह कहानी ऐसे ही लोगों के बीच में प्रचारित होती रहती। यहां तक कि बिटोला के पुत्र के सामने तक भी यही कहानी आयी। जिसे प्रचारित होने में बिटोला के पुत्र को कोई आपत्ति न थी, इससे उसके दामन से दलित परिवार में जन्म लेने का का दाग  मिट रहा था। जो उसके लिये अच्छी ही बात थी। 

  अभी के लिये इतना ही। कल बिटोला के बेटे की बात लिखूंगा। आप सभी को राम राम ।

  
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