डायरी दिनांक २६/११/२०२२
रात के आठ बज रहे हैं।
महाभारत की कथा में जिस पात्र की सबसे अधिक चर्चा होती रही है, वह कुंती का ज्येष्ठ पुत्र कर्ण है। कर्ण जो स्वयं एक देव पिता और क्षत्रिय माता का पुत्र था, जिसे पालन पौषण एक सूत परिवार में हुआ था, जीवन भर दलित होने का दंश झेलता रहा। ऐसा कदापि सत्य नहीं है कि कर्ण अपने काल का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर रहा था। पर ऐसा भी नहीं है कि वह अपने काल के किसी भी धनुर्धर से कम रहा था। कर्ण का जीवन पथ अनगिनत कांटों से भरा रहा था। हालांकि कर्ण को उसके गुरुदेव भगवान परशुराम जी ने ही बता दिया था कि उसकी धमनियों में बहता रक्त एक क्षत्रिय का ही रक्त है। उसके बाद भी उसका जीवन भर उपहास उड़ाया गया। जीवन की कैसी विडंबना थी कि उच्च कुल में जन्मा भी कर्ण दलित के रूप में अपमानित रहा था।
जीवन की सत्यता यही है कि कर्ण जैसी दृढ़ता बहुत कम में होती है। कर्ण जैसी ही कहानी दूसरे पात्र के चयन के साथ ही बहुत कुछ धूमिल सी होने लगती है। जहाँ भगवान परशुराम से वर्ण का, भगवान कृष्ण से माता का तथा खुद माता कुंती के बताने के बाद भी कर्ण ने जीवन पर्यंत अपनी दलित पहचान को नहीं त्यागा, वहीं पात्र बदलने पर संभव है कि वह पात्र खुद समाज को अपने उच्च वर्ण में जन्म लेने की दुहाई देने लगे।
बिटोला के पुत्र धीरज की कहानी कर्ण की कहानी से मिलती जुलती होने के बाद भी उस कहानी से एकदम अलग है तथा बहुत हद तक व्यावहारिक भी है। धीरज उच्च वर्ण में जन्म लेने बाला तथा निम्न वर्ण के परिवार में पालित बहुत कुछ आधुनिक कर्ण ही तो है। बचपन में ही अपने तथाकथित शूद्रत्व का बगाबती खुद को ठाकुर बताता जब साथी बच्चों को छूने भागता तब छूआछूत के संस्कारों से दीक्षित दूसरे बच्चों में भगदड़ सी मच जाती। अध्यापक महोदय को शिकायत की जातीं। तथा कक्षा में दंड का पात्र वही अधिक बनता था।
कर्ण की कहानी के विपरीत धीरज उस आत्मबल से रहित था जबकि व्यक्ति किसी भी बाधा से प्रभावित हुए बिना आगे बढता जाता है। सामान्य जीवन में कर्ण जैसा आत्मबल बहुत कम में होता है।
भले ही धीरज पढाई में अधिक योग्य नहीं था पर उसकी अयोग्यता का एक कारण भी उसे बार बार दलित होने का अहसास कराना ही था। आज जबकि दलित वर्ग को छात्रवृत्ति, आरक्षण आदि की सारी सुविधाएं मिल रहीं हैं, वहीं धीरज प्राथमिक स्तर से अधिक नहीं पढ पाया। आज वह ठाकुरत्व की सारी भावना को भुलाकर सफाई कर्मी का कार्य कर रहा है।
बहुत संभव है कि उपरोक्त विश्लेषण बहुत लोगों को पसंद न आये। यह भी संभव है कि बहुत लोग विश्वास ही न करें कि मेहतर जाति का होने के कारण साथी बच्चे उसके साथ खेला भी नहीं करते थे। बहुत संभव है कि बहुत लोग इस कहानी को मात्र एक झूठ का पुलिंदा समझें। पर सत्य यही है कि उपरोक्त घटनाओं का वर्णन मैंने पूरी निष्पक्षता के साथ किया है। जातिगत रूप से किसी को बार बार अयोग्य ठहराने पर वह व्यक्ति वास्तव में अपना आत्मविश्वास खोकर वैसा ही हो जाता है। सवर्ण लोगों को इसमें कोई बुराई नहीं लग सकती है। पर सच्ची बात है कि ऐसी घटनाएं एक देश के भविष्य को प्रभावित करती ही हैं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम ।