"दोहा"व्यंग बुझौनी बतकही, कर देती लाचारसमझ गए तो जीत है, बरना दिल बेजार।।हँस के मत विसराइये, कड़वी होती बात।व्यंग वाण बिन तीर के, भर देता आघात।।सहज भाव मृदुभासिनी, करती है जब व्यंग।घायल हो जाता चमन, लेकर सातों रंग।।व्यंग बिना बहती नहीं, महफ़िल में रसधार।इक दूजे को नोचकर, देते हैं उपहार।।बड़े-बड़े घंटाल
विधान- 13-11 की यति, चौपाई की अर्धाली व दोहा का सम चरण, सम चरण का अंतिम शब्द विषम चरण का पहला शब्द हो, यही इस दोहा की विशेषता है"सिंहावलोकनी दोहा" परम मित्र नाराज है, कहो न मेरा दोष।दोष दाग अच्छे नही, मन में भरते रोष।।-1रोष विनाशक चीज है, भरे कलेश विशेष।विशेष मित्र
पंख लगा देता अगर,छेरी के करतार ।तो हरियाली से रहित, होता यह संसार ।। -भास्कर मलीहाबादी
“दोहा”चक्र सुदर्शन जोर से घूम रहा प्रभु हाथरक्षा करें परमपिता जग के तारक नाथ।।-१ जब जब अंगुली पर चढ़ा चक्र सुदर्शन पाशतब तब हो करके रहा राक्षस कुल का नाश।।-२ महातम मिश्र गौतम गोरखपु
कुर्सी गयी धंधा गया ,हो गये जो बेकार ,आग लगाते फिर रहे ,नेता हैं दो चार । इनके घर भी फुकेंगे ,दिन ठहरो दो चार इनको इतनी समझ नहीं, आग न किसी की यार ।
खड़ा हुआ हूँ भाव ले, बिकने को मजबूर बोलो बाबू कित चलू, दिन भर का मजदूर॥-1 इस नाके पर शोर है, रोजगार भरपूर हर हाथों में फावड़ा, पहली मे मशहूर॥-2 महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
आज जगत आराध्य मेरे प्रभु श्री अंजनी पुत्र केशरी नंदन श्रीराम प्रिय महाबीर हनुमान जी का पावन जन्म दिन है। प्रेम से बोलिए ॐ जय सियाराम, ॐ जय बजरंगबली....... जय माँ सरस्वती। “दोहा” जन्म दिवस है आप का, आज बीर हनुमान चरण पवन सुत मैं पड़ूँ , ज्ञानी गुण बलवान॥ शुभकामना बध
दोहा, मातु शीतला अब बहे, शीतल नीम बयार निर्मल हो आबो हवा, मिटे मलीन विचार।। डोला मैया आप का, बगिया का रखवार माली हूँ अर्पण करूँ, नीम पुष्प जलधार।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“दोहा” आया मनवा झूमते, अपने अपने धाम गंगा जल यमुना जहाँ, वहीं सत्य श्रीराम॥-1 कोई उड़ता ही रहा, ले विमान आकाश कोई कहे उचित नहीं, बादल बदले प्रकाश॥-2 अपनी अपनी व्यथा है, अपने अपने राग कहीं प्रेम परिहास है, कहीं पथ्य अनुराग॥-3 मंशा कौशल मानकी, नेकी नियती त्याग कर्म फलित होत
बुरा न मानों होली है.....रंग गुलाल रंगोली है....... होली होली सब कहें, होली किसके साथ हाथी चली न सायकल, रास न आया हाथ।।-1 कमल खिला बेपात का, चारो ओर विकास केशरिया मन भा गया, चौथेपन सन्यास।।-2 जनता कबतक देखती, तेरा मेरा खेल मान लिया धन एक है, नौ नौ गिनती फेल।।-3 सम्प्रदाय किसको कहें, किसको कहें
“दोहा” भौंरा घूमे बाग में, खिलते डाली फूल कुदरत की ये वानगी, माली के अनुकूल॥ उड़ने दो इनको सखे, पलती भीतर चाह पंखुड़ियों में कैद ये, इनके मुँह कब आह॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
दोहा” कल चुनाव आयोग ने, कही न्याय की बात दो हजार तक ही रहे, चंदे की औकात॥-1 इस पर चर्चा कीजिये, मंशा रखिए साफ आम जनों की यातना, कौन करेगा माफ॥-2 संविधान देता नहीं, कभी अनैतिक छूट चंदा रहम गरीब को, यह कैसी है लूट॥-3 किसी बहाने ले लिया, जनता का ही नोट भरी तिजोरी खुल गई, फिर जनता से
“दोहा” आर पार की खेलते, शेष रही जो खेल लुक्का छिप्पी हो गयी, मन में पाके मैल॥ सौ सुनार की ठुकठुकी, इक लुहार का छैल आभा आभूषण घटे, फलित नहीं यह गैल॥ देख नमूना आँख से, आर पार का सार,तहस नहस किसका हुआ, चाल हुई बेकार।। बदले में जलते रहे, तेरे भी घर बार मंशा न नापाक करो, कायर
“दोहा” आर पार की खेलते, शेष रही जो खेल लुक्का छिप्पी हो गई, मन में लाये मैल॥ सौ सुनार की ठुकठुकी, इक लुहार के हाथ आभा आभूषण घटे, फलित नहीं यह साथ॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
दोहा मन में ऐसी लालसा, मिलना हो हर रोज समय नहीं मिलता सखे, ए टी एम की खोज।। होने देती है नहीं, पहर हमारी भेंट कभी खड़े है लाइना, कभी पछाड़े नेट।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“दोहा मुक्तक” कली कली कहने लगी, मत जा मुझको छोड़ कल तो मैं भी खिलूंगी, पुष्प बनूँगी दौड़ नाहक न परेशान हो, डाली डाली मौर महक उठूँगी बाग में, लग जाएगी होड़॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी
दोहा अपने आप में, रखता सुंदर भाव जागरूक करता सदा, लेकर मोहक चाव।। छोटी छोटी बात से, मन को लेता मोह चकित करे हर मोड़ पे, वरे न बैर बिछोह।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
दोहा-छंद : गहमा गहमी खूब है, कहीं नमक औ नोट। शोर मचाएँ मतलबी, जिनकी मंशा खोट।। वक्त तख्त के लालची, देते सबको चोट। कर देते गुमराह वे , झपट लेत है वोट।। महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी