दोहा ”
कल चुनाव आयोग ने, कही न्याय की बात
दो हजार तक ही रहे, चंदे की औकात॥-1
इस पर चर्चा कीजिये, मंशा रखिए साफ
आम जनों की यातना, कौन करेगा माफ॥-2
संविधान देता नहीं, कभी अनैतिक छूट
चंदा रहम गरीब को, यह कैसी है लूट॥-3
किसी बहाने ले लिया, जनता का ही नोट
भरी तिजोरी खुल गई, फिर जनता से वोट॥-4
अबतक चली भवाइयाँ, अब नाचेगा मोर
स्वर्ण हिरण मुर्छित हुआ, निकला सूरज भोर॥-5
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी