इश्क़- रज़ा या सज़ा
है खुदा की यह रज़ा,जैसे कर्म वैसी सज़ा;और जहां के लोगों ने भी,कुबूल इसको है किया |कि कैसी भी किसकी सज़ा,होती खुदा की वह रज़ा;तो आज तुम से पूछती हूं,ऐ जहां के ठेकेदारों|आज मुझको यह बताओ,इश्क ऐसा क्या करम है;जिस पर खुदा है खुश हुआ,और तुमने उसको दी सजा |किसी गली किसी किसी मोड़ पर,जब इश्क का एक गुल खिला;तो