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इश्क़- रज़ा या सज़ा

23 जनवरी 2016

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है खुदा की यह रज़ा,

जैसे कर्म वैसी सज़ा;

और जहां के लोगों ने भी,

कुबूल इसको है किया |

कि कैसी भी किसकी सज़ा,

होती खुदा की वह रज़ा;

तो आज तुम से पूछती हूं,

ऐ जहां के ठेकेदारों|

आज मुझको यह बताओ,

इश्क ऐसा क्या करम है;

जिस पर खुदा है खुश हुआ,

और तुमने उसको दी सजा |

किसी गली किसी किसी मोड़ पर,

जब इश्क का एक गुल खिला;

तो सैकड़ों इन हाथों ने,

क्यों उसको तोड़ना है चाहा ?

क्यों इश्क की मासूम कली को,

तोड़ने में गुरूर है?

क्यों तोड़ने को तड़पता हुआ,

ही देखने में सुकून हैं?

क्या इतने नीचे गिर गए हो,

कि खुशियां तुम को काटती है?

या खुदा हर देवता को,

रूह और आत्मा बाटती है?

या नहीं तुमको मिला जब,

ज़ाम- ऐ - इश्क़ जिंदगानी में?

तो तोड़ दोगे सारी बोतल,

इश्क की मयखाने में|

सब टोकते हैं रोकते हैं `

दिल के रिश्ते तोड़ते हैं;

और अक्सर ही मेरा यह,

अदना सा सवाल है|

कि आज मुझको यह बताओ

इश्क ऐसा क्या करम है;

जिस पर खुदा है खुश हुआ,

और तुमने उसको दी सजा |

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इश्क़- रज़ा या सज़ा

23 जनवरी 2016
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है खुदा की यह रज़ा,जैसे कर्म वैसी सज़ा;और जहां के लोगों ने भी,कुबूल इसको है किया |कि कैसी भी किसकी सज़ा,होती खुदा की वह रज़ा;तो आज तुम से पूछती हूं,ऐ जहां के ठेकेदारों|आज मुझको यह बताओ,इश्क ऐसा क्या करम है;जिस पर खुदा है खुश हुआ,और तुमने उसको दी सजा |किसी गली किसी किसी मोड़ पर,जब इश्क का एक गुल खिला;तो

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दूर

25 जनवरी 2016
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जब तू मुझसे जाने को है दूर,तो भी ना जाने क्यों मै चाहती हूँ कि,जब तक हो सके तुझको मैं,अपने सीने से लगा के रखूँ ।है पता मेरा नहीं तू,साथ तेरा किसी और से है;और तब तुझ पे ना मेरी,एक भी कुछ भी चलेगी । लेकिन तू जब तक है अकेला इस कदर तुझसे जुड़ी रहूँ,की तझसे जुदा हो के भी,तेरा कुछ मुझ में बाकी रह जाए ।

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