आज सड़कों पर लिखे हैं
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख ।एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख ।अब यकीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह,यह हक़ीक़त देख लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख ।वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलव