कोई नहीं बताता मेरा इलाज क्या है,
ज़िन्दगी छिपाती है मुझसे ये राज क्या है,
अस्पताल की सीढ़ी पर,
घुटनों बीच सिर दबाये,
एक नन्ही सी बच्ची ,
कुछ बड-बड़ा रही थी,
रुंधी –रुंधी सी आवाज,
चेहरे पर मायूसी जैसे,
माँ की मौत से झूझती
रह-रह कर दुआ कर रही थी,
हे भगवन मेरी जान ले-लो,
मेरी माँ को बचा लो,
क्योंकि डॉक्टर ने कहा था-
अब तो भगवन ही बचा सकता है,
मैंने सुना बच्चों से तो ,
भगवन भी डरता है
फिर तू, बच्चों के लिए भी,
ऐसी परीक्षा रखता है
दुकानदार से बोली-
अंकल,
आपकी इतनी बड़ी दूकान है,
अब आप ही मेरे लिए देवता के सामान हैं
मुझे एक गोली दे दो,
जो मेरी माँ को बचा ले,
दुकानदार की आंखें डबडबा गई,
उसकी मज़बूरी उसके चेहरे पर छा गई,
काश ! में तुम्हें वो आंखरी गोली दे
पाता,
जो में अपनी बिदा होती माँ को नहीं दे पाया,
और जिस पीड़ा से में आज तक नहीं छूट पाया
बेटे, जब आंखरी वक़्त आता है,
ये डॉक्टर, ये दुकानदार ये दवाई
हमसे रूठ जाती है,
और उस समय हमारी अपनी हिम्मत,
और हमारी मज़बूरी काम आती है
इस रंगमंच में जब तक ,
तुम्हारी सांस चलती है, हमारी सांस चलती है,
हमारे डॉक्टर, हमारी दवाईयाँ असर करती हैं,
वरना हम अपनी सारी ज़िन्दगी,
दवा बाँटने में गुजार देते है,
न जाने कितने लोगों को माँ , बाप,
और बच्चों जैसा प्यार देते हैं
हमारी हर दवा के साथ
हमारी दुआ भी रहती है,
पापा एक्सपायरी दवा हटा देना,
हमारी नन्ही सी बिटिया तक कहती है,
कोई हँसता है, कोई रोता है,
संसार सुख दुखों का घरोंदा है,
दर्द किसने पढ़ा हमारी आँखों का,
किसी ने कहा बाज़ार,किसी ने कहा सौदा है
हर बार किस्मत को यों ही न कोसा करना ,
वक़्त बहुत बड़ा मरहम है भरोसा करना,