सोई हुई कुमुदिनी को जगा कर तो
देख,
वो जाग जाये, पहले हाथ लगा कर तो
देख,
थक गई है सीपी, तपती रेत में
बहुत,
एक लम्हा हथेली पर, उठा कर तो
देख,
ये मुहब्बत है समुन्दर, आँसू
ज्वार-भाटे,
बहती हुई रेत है, नाम लिखा कर तो
देख,
शमां कि हँसते-हँसते मिटा देती
है वजूद ,
इस पतंगे को मुहब्बत सिखा कर तो
देख...
जिस्म कहता उठूँ ,तो दर्द कहता
बैठ जाऊ,
कितना घायल हूँ एक बार बता कर तो देख,,,,
विमोचन ..राष्ट्र संवेदना ,,, द्वारा मदन पाण्डेय