‘शिखर’ –परिचय
मूंक हो भाव , वाणी प्रखर चाहिए,
हो लहू नम्र ,खौला जिगर चाहिए,
कूप
तालों से निकलो समुन्दर चलो,
जाह्नवी के लिए तो ‘शिखर’ चाहिए I
धार
नफ़रत की फिर से सिमट जायेगी,
आंधियों की डगर फ़िर से छंट जायेगी
तुम
शिखर सी हरियाली ओढ़ो सही,
प्रेम की बेल दिल
से लिपट जायेगी ,
मदन पाण्डेय “ शिखर”