शत-शत श्रधांजलि .....
धन्य है बुन्देल भूमि, धन्य रानी लक्ष्मी बाई
धन्य भागीरथी , मोरोपंत की छबीली थी,
छूटा जो सुहाग फिर झाँसी के सुहाग हेतु,
फिरंगों के संग होली, लाल रंग खेली थी,
सुन्दर,मुन्दर संग बादलों सी उड़ गई,-
तेवीस की उम्र में वो तिरंगे सी पहेली थी,
सिंहनी सी लड़ी,रूह काँप उठी गोरों की तो,
भारती की ऐसी वीर नार वो अकेली थी I