माँ.....
जिस्म से रूह तक एक-एक रुओं
होती है,
माँ तो माँ है सारी दुनियाँ
से जुदा होती है,
उसकी प्यारी सी थपक आँख
सुला देती है,
वो तो माँ है जो
दुवाओं से दवा देती है I
ये जो शौहरत है बेखोफ़ जिगर,
दौलत है,
माँ के आँचल की हल्की सी हवा
होती है I
जग पल भर को रुके,सांस भले थम
जाये,
माँ की ममता बहते जल सी दुआ
होती हैI
मंदिरों के ये दिए, –फूल,
देहरी के चावल,
हर मुश्किल को उड़ाती सी धुआं
होती हैI
नाम अपना भी सिकन्दर,हो या जहाँ जाने,
माँ के आशीष बिना जीत कहाँ होती है,I