आईने तो यों ही बदनाम होते हैं,
कुछ चेहरे भी, गुमनाम होते हैं
बंद पलकों में रखते जिन्हें लोग-
चर्चे अक्सर वही आम होते हैं ।
रिश्ते बहुत नाज़ुक हुआ करते हैं ,
चंद सांसों में भी टूट जाते हैं,
हम बहुत याद करते हैं जिनको-
वही तो अक्सर रूठ जाते हैं ।
यह तो कमबख्त हँसी हैं जो,
दूसरों के लिए हँसा करती है,
वर्ना एक नकली हंसी में तो-
ज़िन्दगी सौ बार मरती है,
दर्द आँखों का, हमसाया
होता है,
‘जालिम’ जैसे बहुत पराया होता है,
हौले-हौले से दिल तक उतर आता है,
जैसे कोई ‘दोस्त’, ठुकराया होता है ।