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वेश्या का भाई--(अन्तिम भाग)

13 नवम्बर 2021

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जब रामजस चुप हो गया तो कुशमा ने उससे कहा...
तुम चुप क्यों हो गए?
जी! आपने ही तो चुप रहने को कहा मुझसे,रामजस बोला।।
अच्छा वो सब छोड़ो पहले ये बताओ तुमने अपनी दवा खाई,कुशमा ने पूछा।।
जी! नहीं!मैं खाना खाकर बाहर ही आकर बैठ गया,रामजस बोला।।
समय से दवा नहीं खाओगे तो ठीक कैसें होगें,कुशमा बोली।।
भीतर जाते ही खा लेता हूँ,रामजस बोला।।
मेरे बरतन धुल गए हैं ,मैं इन्हें रखने जा रही हूँ साथ में तुम्हारी दवा भी लेती आऊँगीं भीतर से और फिर कुशमा बरतन की डलिया उठाकर भीतर चली गई और रामजस की दवा और लोटे में पानी भी साथ में ले आई,फिर रामजस से बोली .....
लो दवा खा लो!!
फिर रामजस कुशमा से बोला....
आप खड़ीं क्यों हैं?चारपाई में क्यों नहीं बैठतीं?
रामजस के कहने पर कुशमा चारपाई में बैठ गई और वो भी ऊपर आसमान में ताकने लगी,रामजस ने दवा खाई और कुशमा से पूछा....
आसमान अच्छा लग रहा है...
खुले आसमान के नीचे भला किसे अच्छा नहीं लगता,सालों के बाद आज खुलकर साँस ले पा रही हूँ,कुशमा बोली।।
मैं आपको कभी भी कोई तकलीफ़ नहीं होने दूँगा,रामजस बोला।।
मतलब ? कुशमा ने पूछा।।
मेरे कहने का मतलब है कि मुझसे ब्याह करने के बाद आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी,रामजस बोला।।
मेरी सच्चाई पता होते हुए भी तुम मुझसे ब्याह करना चाहते हो,कुशमा ने पूछा।।
तो क्या हुआ? मैं आपको अपवित्र नहीं समझता,रामजस बोला।।
अपवित्र नहीं तो और क्या हूँ? तुम्हारे लायक नहीं हूँ मैं,कुशमा बोली।।
तुम अपवित्र नहीं हो लोगों की सोच ने तुम्हें अपवित्र कर उस जगह पहुँचाया,रामजस बोला।।
मैं अपवित्र हो चुकी हूँ,मुझे लाख गंगाजल और दूध से भी नहलाया जाएं ना तो तब भी पवित्र ना हो पाऊँगी,कुशमा बोली।।
लेकिन मुझे तो ऐसा नहीं लगता,तुम तो मुझे शीतल,निर्मल ही दिखाई देती हो,रामजस बोला।।
तभी माई भी बाहर आई क्योकिं वो भीतर से इन दोनों की बातें सुन रही थीं,बाहर आकर वें बोलीं.....
बेटी! तुम खुद को अपवित्र क्यों समझती हो? अहिल्या को भी तो इन्द्र ने अपवित्र कर उसकी अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया था लेकिन राम ने अहिल्या को छूकर फिर से पवित्र कर दिया था,उसी तरह ये भी तुम्हारे जीवन में तुम्हारा राम बनकर आया है,जिसका सानिध्य पाकर तुम पवित्र हो जाओगी,इससे अच्छा जीवनसाथी तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा,जिसे तुम्हारी सारी सच्चाई पता होते हुए भी तुम्हें अपनी पत्नी का दर्जा देना चाहता है,एक मेरा पति था जिसने मुझे पवित्र होते हुए भी मुझे पदभ्रष्टा की उपाधि देकर घर से निकाल  दिया,अभी तुम्हारा बहुत जीवन शेष है कृपया इसका हाथ थाम लो।।
माई की बात सुनकर कुशमा को कुछ नहीं सूझा और वो बोली....
माई! भीतर तक टूट चुकी हूँ,खुद को जोड़ने के लिए कुछ समय चाहिए,पहले खुद को तो सम्भालना सीख लूँ,तब तो अपने जीवनसाथी को सम्भाल पाऊँगीं...
हाँ! मुझे कोई जल्दी नहीं है,आप बस हाँ कर दें,मैं सालोंसाल आपका इन्तजार कर सकता हूँ,रामजस बोला।।
सच! में मेरा इन्तजार करोगे,कुशमा ने पूछा।।
जी! हमेशा आपका इन्तजार करता रहूँगा,रामजस बोला।।
बहुत अच्छा,भगवान तुम लोगों की जोड़ी सलामत रखें और इतना कहकर माई फिर से भीतर चलीं गई,उनके जाते ही कुशमा ने रामजस से पूछा....
तुम  ऐसी हमदर्दी सभी के साथ जताते हो या केवल मेरे साथ ही ऐसा है,
मैं सभी के साथ हमदर्दी जताता हूँ लेकिन आपके लिए कुछ ख़ास ही है,रामजस बोला।
मेरे लिए ख़ास क्यों?कुशमा ने पूछा।।
आपके लिए मेरे जज्बात इसलिए ख़ास हैं क्योकिं मैनें जब आपको पहली बार देखा था तभी मुझे आपसे मौहब्बत हो गई थी,रामजस बोला।।
मौहब्बत वो भी एक तवायफ़ से,कुशमा बोली।।
अब ये तो  मौहब्बत है जी! ये तो बस एक नज़र का खेल हैं,किसी की निगाहें-ए-नज़र कलेजे को चीर कर चलीं जातीं हैं और उसके महबूब को उससे मौहब्बत हो जाती है,वैसा ही उस रात मेरे साथ हुआ था जब मैं मंगल भइया के कहने पर आपसे मिलने आया था,रामजस बोला।।
सच! में मुझसे मौहब्बत करते हो,कुशमा ने पूछा।।
जी! यकीन ना हो तो कभी आजमाकर देख लेना,बन्दा आपके लिए अपनी जान भी दे सकता है,रामजस बोला।।
मुझे जान नहीं चाहिए तुम्हारी,बस तुम हमेशा सलामत रहो,कुशमा बोली।।
चलो! कुछ तो हमदर्दी रखती हैं आप अपने दिल में मेरे लिए,रामजस बोला।।
अच्छा! भीतर भी चलोगे या यहीँ बाहर ही बैठे रहोगे,सोना नहीं है क्या? कुशमा बोली।।
जब से आपको देखा है हमारी तो नींद ही उड़ गई है,रामजस बोला।।
बस...बस....आशिकी झाड़ चुके हों तो जरा भीतर चलकर थोड़ा आराम फरमा लें,कुशमा बोली।।
चलिए आप कहतीं हैं तो भीतर ही चलते हैं,रामजस बोला।।
और रामजस जब चारपाई से उठने लगा तो कुशमा ने उसे सहारा दिया और फिर अपने सहारे से ही उसे भीतर ले गई.....
    और फिर सब अपनी अपनी जगह सोने के लिए लेट गए.....
अभी सबको एक साथ रहते दो ही दिन बीते थे कि एक शाम सबको खोजते हुए नवाबसाहब उन सब तक अपनी मोटर में पहुँच ही गए,साथ में कई लठैतों को लेकर पहुँचें मोटर से नीचे उतरें और बाहर से ही दहाड़ना शुरु कर दिया....
मंगल! नमकहराम कहीं के,जिस थाली में खाता है उसी में छेद करता है,हमें मालूम है तू इस झोपड़ी में छुपा बैठा है,साथ में कुशमा भी है एक एक करके तुम सब बाहर आ जाओ,नहीं तो ये हमारे हाथों में जो बंदूक है उसकी गोलियाँ किसी को भी जिन्दा नहीं छोड़ेगीं....
    सबने नवाबसाहब की आवाज़ सुनी तो सहम गए,भाग भी नहीं सकते थे,क्योकिं बाहर मौजूद उन सब लठैतों के हाथ में हथियार थे और ये सब लोंग निहत्थे थे,अब सिवाय बाहर जाने के किसी के पास कोई भी रास्ता ना था,पहले मंगल झोपड़ी से बाहर निकला फिर कुशमा निकली और साथ में शकीला भी चूँकि रामजस के पैर में चोट लगी थी इसलिए सबने उसे बाहर आने से मना किया.....
      मंगल को देखकर नवाबसाहब घोड़ो पर सवार अपने लठैतों से बोलें.....
बाँध दो हरामजादे को रस्सी से और घोड़े से बाँधकर जमीन पर घसीटते हुए हवेली तक ले चलो,हमारे खिलाफ़ आवाज़ उठाता है,आज तो इसका खेल ही खतम कर देते हैं.....
   और फिर जैसे ही मंगल उन सबके करीब पहुँचा तो सभी लठैतों ने मंगल पर लाठियों से हमला बोल दिया,मंगल भी बड़ी बहादुरी से सबसे लड़ने लगा उसने एक एक लठैत को धूल चटा दी और ये देखकर नवाबसाहब के तोते उड़़ गए उन्होंने सोचा कि अगर मैं ने इसे अभी जिन्दा छोड़ दिया तो ना जाने फिर मेरा क्या अन्जाम होगा और उन्होंने बंदूक मंगल की ओर तान दी....
  और बोले...
चुपचाप हमारे साथ हवेली चल,यहाँ बहादुरी मत झाड़,तूने अभी हमें पहचाना नहीं,हमारी दरियादिली देखी है तूने,अब हम तुझे अपनी नफरत दिखाएगें....
          लेकिन नवाबसाहब को ये पता नहीं चला कि था कि इस मुठभेड़ के बीच माई कब बाहर निकलकर आ गई और वो नवाबसाहब के पीछे जाकर खड़ी हो गई ,ज्यों ही नवाबसाहब ने बंदूक से निशाना साधा तो माई ने नवाबसाहब को पीछे से धक्का दे दिया ,धक्का लगने से नवाबसाहब जमीन पर गिर पड़े और धूल चाटते नज़र आएं ,उनके हाथ से बंदूक छूटकर दूर छिटक गई,माई ने मौके का फायदा उठाकर बंदूक उठा ली और नवाबसाहब पर तानते हुए बोली....
अगर आपने मंगल या कुशमा को हाथ भी लगाया तो आपके लिए ये अच्छा ना होगा, आप बिना कुछ किए चुपचाप चले जाएं तो आपके लिए ठीक होगा वरना मैं आपको गोली मार दूँगी।।
माई की बात सुनकर नवाबसाहब बोलें....
जा...जा...तू और हमे गोली मारेगी,तुझमें इतना दम ही नहीं है,ऊपर से तू एक औरत ठहरी,तू क्या हम पर गोली चलाएगी?
नवाबसाहब! मेरे सब्र का इम्तिहान मत लीजिए,मैं कहती हूँ चुपचाप यहाँ से चले जाइए,मेरे जीते जी आप मंगल और कुशमा को यहाँ से नहीं ले जा सकते,माई गरजी।।
ए...बुढ़िया तू क्या समझती है? हम तेरी धमकियों से डर जाएगें, रामू,भोलू,रहीम और राधे, तुम सब खड़े खड़े मेरा मुँह क्या देख रहो हो ?उठाकर सबको हवेली ले चलो,वहीं इन सबकी खातिरदारी अच्छे से की जाएगी,नवाबसाहब बोले।।
तो आप नहीं मानेगें,माई बोली।।
तूने कहा और हम मान लें,ये नामुमकिन है,कुशमा ने हमारी बेइज्जती की थी,हम उसका बदला उससे जरूर लेकर रहेगें,नवाबसाहब बोले।।
तो आपका ये ख्वाब मैं कभी भी पूरा नहीं होने दूँगीं,माई बोली।।
तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती,बंदूक चलाने के लिए जिगर चाहिए होता है जो हम मर्दो के पास होता है,तेरी जैसी औरतों के पास नहीं,समझीं! हट जा! हमारे रास्ते से,नहीं तो इन सबकी तरह हम तुझे भी मसल कर रख देगें,नवाबसाहब बोले।।
तो ठीक है,इतना समझाने पर आप नहीं समझें तो फिर मैं भी मजबूर हूँ!!
और इतना कहकर माई ने नवाबसाहब के सीने पर एक गोली दाग दी....फिर दूसरी दागी....फिर तीसरी भी...
   अब नवाबसाहब का काम तमाम हो चुका था,ये सब देखकर नवाबसाहब के ड्राइवर और लठैत ने नवाबसाहब को मोटर में बैठाया और भाग खड़े हुए...
   फिर दो तीन घण्टे बाद माई की झोपडी़ में गोरों की पुलिस आ धमकी और नवाबसाहब के खून के जुर्म में माई को गिरफ्तार करके ले गई.....
   अब सब परेशान थे कि माई को कैसे जेल से छुड़ाया जाए क्योकिं अगर एक बार माई पर जुर्म साबित हो गया तो माई को फिर जेल से निकालना नामुमकिन है,उनमे से ना तो किसी के पास इतना रूपया था कि किसी अच्छे से वकील को करके माई का केस लड़वा सकें।।
     अब मंगल और रामजस मजदूरी करने लगे थे क्योकिं खाने को खाना भी तो चाहिए था,तभी एक दिन बहु-बेग़म उनकी झोपड़ी में आईं और बोलीं.....
हमें सब पता चल चुका ,तुम लोंग परेशान ना हो हमने शहर के एक बहुत ही मशहूर वकील से बात कर ली है जो आपकी माई का केस लड़ने को तैयार हैं....
आपके शौहर की कात़िल माई हैं ,ये जानते हुए भी आप हमारी और माई की मदद कर रहीं हैं ,मंगल बोला।।
नवाबसाहब ने जैसे काम किए थे तो उनका तो एक ना एक दिन यही अन्जाम होना था,उनमें इन्सानियत बची ही नहीं थी तो ऐसे इन्सान को इस दुनिया में रहने का कोई हक़ नहीं था,बहु-बेग़म बोलीं।।
सच! आपका दिल बहुत बड़ा है,शकीला बोली।।
हमारा दिल नहीं गुलनार का दिल बड़ा है,उन्होंने ही आपकी मदद की है,वो ही सारा रूपया खर्च कर रहीं हैं,हम तो हवेली छोड़कर अब उनके ही साथ रहते हैं,उन्होंने कोठे की लड़कियों का नाच गाना छुड़वा दिया है,अब सब सिलाई और कसीदाकारी करके ही अपना पेट पालती हैं,अब वें आजादी के आन्दोलनकारियों की भी मदद करतीं हैं ताकि हमारा मुल्क जल्द से जल्द आजाद हो सकें,बहु-बेग़म बोली....
सच में ! गुलनार ख़ालाजान इतनी बदल गई हैं,कुशमा बोली।।
हाँ! वे अब दरियादिल हो गईं हैं,बहु-बेग़म बोलीं।।
और फिर कुछ देर बात करने के बाद बहु-बेग़म चली गईं...

      फिर एक दिन सब वकील साहब से मुलाकात करने पहुँचें,वकील साहब ने एक बार मुजरिम से मुलाकात करने की इच्छा जाहिर की, फिर वकील साहब जेल पहुँचे,माई से मुलाकात करने और जब वकील साहब ने माई को देखा तो बोले....
  भाभी! आप! और यहाँ ,ऐसे हालातों में।।
माई ने भी वकील साहब को पहचान लिया और बोलीं....
घनश्याम बाबू आप! वकील के लिबास़ में।।
जी,मैं आपका वकील हूँ,घनश्याम बाबू बोले।।
ओह...अच्छा लगा इतने सालों बाद आप से मिलकर,माई बोली।।
भाभी! मेरी वज़ह से आपकी जिन्द़गी तबाह हो गई,घनश्याम बाबू बोले।।
आपकी वज़ह से नहीं घनश्याम बाबू! लोगों की गंदी सोच की वज़ह से,माई बोली।।
मेरी नज़रों में तो आप मेरी बहन के समान थी,लेकिन हम दोनों के रिश्ते को उन सबने कलंकित कर दिया,घनश्याम बाबू बोले।।
मैं जानती हूँ कि आप मुझे अपनी बहन समझते थे,माई बोली।।
और ये सब क्या है ?यहाँ तक कैसें पहुँचीं आप? घनश्याम बाबू ने पूछा।।
फिर माई ने अपनी रामकहानी घनश्याम बाबू को कह सुनाई,ये सुनकर घनश्याम बाबू का मन द्रवित हो गया और वें बोलें....
आपका ऋण चुकाने के लिए ही शायत नियति ने हमें दोबारा मिलाया है,मैं आपका भाई हूँ इसलिए आपकी रक्षा के लिए मुझे ईश्वर ने आपसे मिलाया है,उस दिन तो मैं आपकी रक्षा ना कर सका,लेकिन अब मैं इस काबिल हूँ कि अपनी बहन को इस मुश्किल से निकाल लूँगा,घनश्याम बाबू बोले।।
  चलो अपने तो पराए हो गए उन्होंने तो साथ नहीं निभाया लेकिन जो पराएं हैं वें अपनों से बढ़कर हो गए,दो बेटे मिल गए,दो बेटियाँ मिल गई और एक भाई मिल गया,मेरा तो परिवार पूरा हो गया,माई बोली।।
और फिर ऐसे ही दोनों के बीच बातें चलती रहीं....
    फिर माई(विजयलक्ष्मी) पर केस चला और फिर बहु-बेग़म,गुलनार और सभी की गवाही पर विजयलक्ष्मी को निर्दोष साबित कर दिया गया फिर वो जेल से छूटकर आ गई और अपने परिवार के साथ रहने लगी।।
    बाद में रामजस का ब्याह कुशमा से हो गया और मंगल ने शकीला से ब्याह कर लिया,ये सब भी देश की आजादी के लिए आन्दोलनकारियों के साथ कार्य करने लगें,बहु-बेग़म और गुलनार ने एक साथ रहकर एक खादी का कपड़ा बुनने का कारखाना खोल लिया जहांँ कोठे की सभी लड़कियांँ काम करने लगी।।
    अब सबकी जिन्द़गी में खुशहाली आ चुकी थी,इस तरह से एक वेश्या के भाई ने अपनी बहन को कोठे के दलदल से निकाल ही लिया।।

समाप्त....🙏🙏😊
सरोज वर्मा.....


Anita Singh

Anita Singh

बहुत ही अच्छी कहानी।

26 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर कथानक 👌 👌 👌

22 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

बहुत अच्छा समापन

11 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
वेश्या का भाई
5.0
एक ऐसे भाई की कहानी जो अपनी बहन को वेश्यालय से छुड़ाने का प्रयास करता है और उसमें सफल भी होता है।।
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वेश्या का भाई--भाग(१)

12 नवम्बर 2021
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वेश्या का भाई--भाग(२)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">कुछ वक्त के बाद केशर बाई की पालकी नवाबसाहब की हवेली के सामने जाकर रूक

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वेश्या का भाई--भाग(३)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">केशरबाई मुज़रा करते हुए बहुत थक चुकी थी इसलिए वो रातभर बिना करवट बदले

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वेश्या का भाई--भाग(४)

12 नवम्बर 2021
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वेश्या का भाई--भाग(५)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">इन्द्रलेखा भीतर जाकर भगवान के मंदिर के सामने खड़ी होकर फूट फूटकर रो पड़

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वेश्या का भाई--भाग(६)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">इन्द्रलेखा और कुशमा इस बात से बेख़बर थी कि उनके पीछे जमींदार गजेन्द्र

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वेश्या का भाई--भाग(७)

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<div align="left"><p dir="ltr">केशर नहाकर आई तो शकीला उसके और अपने लिए खाना परोस लाई,दोनों ने मिलकर

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वेश्या का भाई--भाग(८)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">ताँगा रूका, दोनों ताँगेँ से उतरीं फिर केशर ने ताँगेवाले को पैसे दिए औ

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वेश्या का भाई--भाग(९)

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<div align="left"><p dir="ltr">मंगल के जाने के बाद फ़ौरन ही शकीला,केशर के पास पहुँची,उसे देखकर केशर ब

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वेश्या का भाई--भाग(१०)

12 नवम्बर 2021
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वेश्या का भाई--भाग(११)

13 नवम्बर 2021
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वेश्या का भाई--भाग(१२)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">फिर कुछ देर सोचने के बाद केशर बोली....<br> क्या कहा तुमने? तुम मंगल भ

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वेश्या का भाई--भाग(१३)

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वेश्या का भाई--भाग(१४)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">बहु-बेग़म झरोखे पर अपने बीते हुए कल को याद करने लगी,उसके अब्बाहुजूर नि

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वेश्या का भाई--भाग(१५)

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वेश्या का भाई--भाग(१६)

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वेश्या का भाई--भाग(१७)

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वेश्या का भाई--भाग(१८)

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वेश्या का भाई--भाग(१९)

13 नवम्बर 2021
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वेश्या का भाई--भाग(२०)

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वेश्या का भाई--(अन्तिम भाग)

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