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वेश्या का भाई--भाग(१७)

13 नवम्बर 2021

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दोनों का खाना बस खत्म ही हो चुका था कि तभी बुर्के में सल्तनत उनके पास आ पहुँची सल्तनत को देखते ही मंगल बोला....
अरे,बहु-बेग़म! आप ! यहाँ और इस वक्त...
हाँ! हमें आना ही पड़ा,हम ये कहने आए थे कि आप दोनों फौरन यहाँ से भाग जाइए और हो सके तो साथ में केशर को भी को कोठे से लिवा लीजिए क्योकिं अब नवाबसाहब के सिर पर ख़ून सवार है और वे अपनी बेइज्जती का बदला केशर से जुरूर लेकर रहेगें,उनका पूरा पूरा साथ गुलनार दे रही है,सल्तनत बोली।।
आप परेशान ना हों,बहु-बेग़म! हम दोनों भी बस यही सोच रहे थे कि खाना खतम होते ही इस कोठरी से निकल जाएं,मंगल बोला।।
आप सबकी जान को ख़तरा है,ना जाने नवाबसाहब के इरादें क्या हैं?ऊपर से वो गुलनार भी ना जाने कौन से जन्म के बदले ले रही है केशर से,सल्तनत बोली।।
आप बेफिक्र रहें बहु-बेग़म हम दोनों केशर को वहाँ से सही-सलामत निकाल लेगे,रामजस बोला।।
आप सब की अल्लाह हिफाज़त करें,खुदाहाफ़िज़! अब हम चलते हैं,क्योकिं नवाबसाहब किसी भी वक्त आतें होगें,उनके आने से पहले आप दोनों यहाँ से निकल जाएं तो अच्छा होगा,सल्तनत बोली।।
जी ! बस हम लोंग निकलते हैं,मंगल बोला।।
ठीक है! और इतना कहकर सल्तनत मायूसी के साथ चली गई,इधर रामजस और मंगल भी अपनी जमापूँजी लेकर कोठे की ओर निकल पड़े,कोठे पहुँचे तो उन्हें कोठे पर मौजूद लठैतों ने भीतर घुसने नहीं दिया क्योकिं गुलनार ने लठैतों से कह रखा था कि जब कोई खरीदार खुद की बग्घी या मोटर में आए तो उन्हें ही भीतर घुसने देना कोई भी ऐरा-गैरा कोठे में कदम ना रखने पाएं और लठैतों ने गुलनार के हुक्म को तबज्जो दी इसलिए उन्होंने रामजस और मंगल को भीतर घुसने नहीं दिया।।
      अब दोनों कोठे के बाहर खड़े होकर सोचने लगे कि अब क्या किया जाए? तभी नवाबसाहब अपनी बग्घी में बैठते हुए नज़र आएं वें शायद कोठे से वापस अपनी हवेली जा रहे थे,ये अच्छा मौका था दोनों के लिए तब मंगल ने रामजस से कहा....
लगता है नवाबसाहब हवेली वापस चले गए हैं,क्यों ना हम खिड़की से कोठे के भीतर दाखिल हो?
और अगर पकड़े गए तो,रामजस बोला।।
ऐसा करते हैं एक भीतर चला जाएं और दूसरा बाहर ही पहरा दे तो कैसा रहेगा?मंगल बोला ।।
ये तो सही रहेगा और ये रहा बहु-बेग़म का दिया हुआ बुर्का इसे पहन लो फिर तुम्हें कोई ना पहचानेगा,रामजस बोला।।
हाँ! ये तरकीब अच्छी रहेगी,मंगल बोला।।
तो फिर देर किस बात की,इसे पहनकर भीतर जाइए और केशर को लिवा लाइए,रामजस बोला।।
मंगल ने बुर्का पहनते हुए कहा कि ठीक है तो मैं जाता हूँ और फिर मंगल खिड़की से भीतर घुस गया इत्तेफाक से उस कमरें में उस वक्त शकीला के सिवाय वहाँ कोई भी मौजूद ना था,मंगल ने शकीला को फौरन पहचान लिया और लड़की की आवाज़ में बोला...
मोहतरमा! हमें केशरबाई से मुलाकात करनी हैं।।
शकीला बोली....
जी! आप कौन? और यहाँ कैसे आईं?क्योकिं दरवाजा तो उस ओर है?
जी!एक बार केशर से मुलाकात करवा देतीं तो बहुत मेहरबानी होती आपकी?मंगल फिर से बोला ।।
आप हैं कौन? पहले ये बताएं,शकीला ने जिद़ की।।
हम उनकी सहेली हैं,मंगल बोला।।
रातोरात ऐसी कौन सी सहेली पैदा हो गई और मुझे खबर तक ना हुई,शकीला बोली।।
जी! मैं उनकी ख़ास सहेली हूँ बचपन की,शायद आप मुझे नहीं पहचानतीं,मंगल बोला।।
मुझे आप पर भरोसा नहीं,मैं अभी गुलनार खाला को बुलाएँ देती हूँ,वें ही आपसे सच्चाई उगलवा लेगीं,शकीला बोली।।
तभी मंगल बोला...
चुप हो जा मेरी माँ! क्योकिं शामत बुला रही है,मैं मंगल हूँ,केशर को बुला दो,मैं उसे यहाँ से लेने आया हूँ हमेशा-हमेशा के लिए,
सच! काश ! मेरा भी भाई होता तो वो भी मुझे यहाँ से निकाल लेता,शकीला बोली।।
आप भी चलेगीं तो चलिए,मंगल बोला।।
सच! क्या तुम मुझे भी ले चलोगे?शकीला ने पूछा।।
हाँ! सच चलेगीं ना मेरे मेरे साथ,मंगल ने पूछा।।
हाँ! क्यों नहीं? खुशी से,बस मैं अभी केशर को लेकर आती हूँ और इतना कहकर शकीला गई और कुछ ही पलों में केशर को लेकर आ पहुँची और फिर तीनों खिड़की के रास्ते बाहर आएं और फिर चारों वहाँ से भागने में कामयाब भी हो गए लेकिन उन्हें जाते हुए एक नौकरानी ने देख लिया और जाकर गुलनार को सब बता दिया।।
   ये सुनकर गुलनार ने फौरन ही अपनी लठैतों से कहा.....
रामू,बल्लू,किशन,आतिफ,कालू.....कहाँ मर गए सबके सब?
सभी लठैत फौरन हाजिर हुए और गुलनार से पूछा....
जी! क्या हुक्म है आपा?
तब उन सबसे गुलनार बोली....
जाओ जाकर सबका पीछा करो और अगर काबू में आ जाएं तो सबको लहुलुहान कर दों ....याद रखना बचकर ना भागने पाएं,ज्यादा होशियारी दिखाएं दें तो जान से मार देना लेकिन मनहूस ख़बर लेकर हमारे पास मत आना।।
और फिर गुलनार के लठैत चारों के पीछे भागें फिर कुछ ही देर लठैतों ने चारो को पा भी लिया,मंगल तो पुराना लठैत था उसने उन में से किसी एक लठैत की लाठी छीनी और टूट पड़ा सब पर, एक एक को रूई की तरह धुनने लगा,तब तक रामजस के हाथों में भी एक लाठी आ चुकी थी उससे भी जैसे बन पा रहा था तो वो भी लठैतों को मज़ा चखा रहा था,लेकिन वो लठैत नहीं था इसलिए वो ज्यादा देर तक नहीं लड़ पाया ,उसके पैर में किसी लठैत की जोर की लाठी पड़ी और वो वहीं जमीन पर गिर पड़ा,केशर और शकीला भी जमीं पर गिरी हुई लठैतों की लाठी उठाकर लठैतों को पीटने लगी,एक एक करके जब सभी लठैत धराशायी हो गए तो मंगल ने रामजस को सहारा देकर उठाया और चलने को कहा....
    रामजस के पैर में काफी़ चोट आई थी कुछ चोटें उसके माथे पर भी आईं थीं उसे उस वक्त चलने में काफी़ तकलीफ़ हो रही थी,लेकिन वहाँ से भागना था इसलिए चारों हिम्मत करके आगें की ओर बढ़ने लगें,रात का अन्धेरा और अन्जान सी डगर,जाने चारों किस रास्ते पर चलते जा रहें थे।।
     उधर गुलनार मन ही मन खुश हो रही थी कि अब लठैत तो चारों का काम तमाम करके ही वापस लौटेगें और उसने एक नौकर से कहा ....
   जुम्मन मियाँ! अब तक तो नवाबसाहब अपनी हवेली पहुँच गए होगें,उन्हें जाकर ख़बर कीजिए कि वो दोनों नमकहराम यहाँ कोठे पर आएं थे और केशरबाई के साथ साथ शकीला को भी अपने साथ उड़ा ले गए लेकिन हमने भी उन सबकी खिदमतगारी में कोई कसर नहीं छोड़ी अपने नामचीन लठैतों को उनके पीछे लगा दिया है और वें सब उन सबका काम तमाम करके ही लौटेगें।।
  और फिर जुम्मन मियाँ ये खबर देने हवेली पहुँच गए,वहाँ ये ख़बर सल्तनत ने भी सुनी और फिर वो जुम्मन के जाते ही नवाबसाहब से बोली....
  वाह....वाह....क्या खूब तरीका निकाला है आपने केशरबाई से बदला लेने का?
बहु-बेग़म! हमने कुछ नहीं किया,ये सब तो गुलनार का किया धरा है,नवाबसाहब बोले।।
लेकिन ये तरकीब तो गुलनार को आपने ही सुझाई थी,सल्तनत बोली।
तो क्या करते आप ही बताएं? वो दो कौड़ी की नाचने वाली हमारी बेइज्जती करती रहती और हम चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते,नवाबसाहब बोले।।
ओहो....ये तो बड़ी मर्दानगी दिखाई आपने,इसे आप मर्दानगी कहते हैं,लेकिन आपको मालूम होना चाहिए ऐसा काम तो नापुंसक भी नहीं करते,जो काम आपने किया है,सल्तनत बोली।।
खामोश़....खामोश़ हो जाइए बहु-बेग़म! आप हमारी हमारे सामने ही तौहीन कर रहीं हैं,शर्म नहीं आती आपको,हमारा दिया खाती हैं,हमारा दिया हुआ पहनती है,ये आपकी शान-ओ-शौकत सब हमारी वजह से है और आप हमें ही आँखे़ दिखा रही हैं,नवाबसाहब गुर्राए।।
    बड़ा गुमान है ना आपको अपनी इस दौलत और शौहरत का,इसी के दम पर ही तो आप लोगों की मजबूरी का फायदा उठाया करते हैं तो नहीं चाहिए हमें ऐसी दौलत और शौहरत हम आपकी ये हवेली अभी छोड़कर जा रहे हैं,सल्तनत गुस्से से बोली।।
  हमने आपसे हवेली से जाने को तो नहीं कहा,नवाबसाहब बोले।।
क्या फायदा ऐसी जग़ह रह कर जहाँ घड़ी घड़ी हमें हमारी औकात याद दिलाई जाए?सल्तनत बोली।।
लगता है आपका दिमाग़ ख़राब हो गया है,आप गुस्ताख़ी कर रही हैं,नवाबसाहब बोले।।
हाँ! हो गया है हमारा दिमाग़ ख़राब़,हम पागल हो गए हैं,कोफ्त होने लगी है हमें ऐसी जिन्द़गी से,नहीं चाहिए हमें ऐसी जिल्लत भरी जिन्दगी और ये कहकर सल्तनत ने हवेली के बाहर कदम रख दिया और नवाबसाहब ने सल्तनत को रोकने की बहुत कोश़िश की लेकिन वो नहीं मानी और वो हवेली से बाहर निकल गई.....
       उस समय रात बीतने को थी और सुबह होने को थी,आज पहली बार सल्तनत ने असलियत में अपनी जिन्द़गी की सुबह देखी थी और वो पहले गुलनार से मिलना चाहती थी,वो उससे ये सवाल पूछना चाहती थी कि आखिर औरत होकर वो दूसरी औरत का साथ देने को तैयार क्यों नहीं है?
     उसने भी तो किसी मजबूरी में ही कोठे का रास्ता चुना होगा तो फिर वो केशर के मन की बात क्यों नहीं समझी,क्यों वो केशर और उसके भाई मंगल की खून की प्यासी हो गई?और फिर सल्तनत गुलनार के कोठे का पता पूछते पूछते बदनाम गलियों में आ पहुँची....
    वो कोठे के दरवाजे पर पहुँची और उसने देखा कि गुलनार का कोठा सच में बहुत आलीशान और अव्वल दर्जे का था,जब खरीदार अच्छे बुलाने हो तो दुकान और उसकी चीजों को करीने से सजाकर ही रखा जाता है,ऐसा सल्तनत ने मन में सोचा और फिर सल्तनत ने दरबान से कहा....
हमें गुलनार से मुलाकात करनी हैं,क्या वें मौजूद हैं?
जी! हाँ! आप मेहमानखाने में तशरीफ़ रखें,मैं अभी उन्हें आपकी खिदमत में पेश करता हूँ और इतना कहकर दरबान ने भीतर जाकर किसी नौकरानी को पैगाम दिया,पैगाम पाकर गुलनार मेहमानखाने में दाखि़ल हुई और उसने सल्तनत से पूछा....
जी! आप! मैने पहचाना नहीं आपको।।
आप मुझे कैसे पहचानेगी? बदनाम औरतों को हम शरीफ़ औरतों से मिलने से मना कर रखा है ना इस दुनिया के मर्दो ने,सल्तनत बोली।।
क्या आप ये जाहिर कर रहीं हैं कि हम तवायफ़ और आप शरीफ़ हैं?गुलनार बोली।।
जी! नहीं! हमारा वो मतलब नहीं था,हम तो बस आपसे एक सवाल पूछना चाहते थे,सल्तनत बोली।।
जी! पूछिए,गुलनार बोली।।
आप एक औरत हैं ना तो फिर ऐसा क्यों?सल्तनत बोली।।
हम कुछ समझें नहीं,गुलनार बोली।।
आपने केशर और उसके भाई के पीछे लठैंत क्यों लगाएं?सल्तनत ने पूछा।।
हमसे ये सवाल पूछने वाली आप कौन होतीं हैं?गुलनार बोली।।
जी!एक औरत अभी यही हमारी पहचान है,सल्तनत बोली।।
तो क्या हम आपकी पुरानी पहचान जान सकते हैं?गुलनार ने पूछा।।
जी! पहले हम हवेली की बहु-बेग़म थे,सल्तनत बोली।।
तो क्या आप नवाबसाहब शाहबहादुर मिर्जा साहब की बेग़म हैं?
जी! बेग़म थे अब नहीं हैं,हम उनसे सारे रिश्ते तोड़कर आ चुके हैं,सल्तनत बोली।।
आपने बहु-बेग़म का ख़िताब भी छोड़ दिया और हवेली भी,गुलनार ने पूछा।।
जी! हाँ! इस दुनिया में कहीं ना कहीं कोई ना कोई कोना मिल ही जाएगा सिर छुपाने के लिए,सल्तनत बोली।।
आपने अपने बेटे का ख्याल भी नहीं किया?गुलनार ने पूछा।।
उनका ख्याल क्या करना?वे तो विलायत में पढ़ रहे हैं,वें भी तो एक मर्द ही ठहरे,वें भी आगें चलकर अपने बाप की तरह उनके नक्शेकदम पर चलेगें,सल्तनत बोली।।
केशर के लिए आपने अपना सबकुछ छोड़ दिया,गुलनार ने पूछा।।
इसके सिवा कोई रास्ता नहीं बचा था,सल्तनत बोली।
आपने बहुत ही सख्त रास्ता चुना,गुलनार बोली।।
सालों पहले चुन लेना चाहिए था,लेकिन हिम्मत ही नहीं थी,देर से ही सही हमारी आँखें तो खुलीं,सल्तनत बोली।।
तो अब हम आपके लिए क्या कर सकते हैं? गुलनार ने पूछा।।
थोड़े से सुकून की चाहत रखते हैं अगर दे सकतीं हैं तो दे दीजिए,सल्तनत बोली।।
हम आपको कैसे सुकुन दे सकते हैं? गुलनार ने पूछा।।
जी! केशर और उसके भाई की जान बख्श कर ,सल्तनत बोली।।
आपकी दरियादिली देखकर हमारी भी आँखें खुल गई हैं,आपकी ख्वाहिश जरूर पूरी होगी,गुलनार बोली।।
ये ख्वाहिश नहीं गुजारिश़ है,सल्तनत बोली।।
दोनों के बीच बातें चल ही रहीं थीं कि तभी एक घायल लठैत लगड़ाता हुआ वापस लौटा और बोला....
आपा! माफ कीजिएगा! सभी भाग निकलें.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...

 


Anita Singh

Anita Singh

बढ़िया

26 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत बढिया 👌 👌 👌

22 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

👌

11 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
वेश्या का भाई
5.0
एक ऐसे भाई की कहानी जो अपनी बहन को वेश्यालय से छुड़ाने का प्रयास करता है और उसमें सफल भी होता है।।
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वेश्या का भाई--भाग(१)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr"><b>वेश्या</b><b> या</b><b> </b><b>तवायफ़</b> एक ऐसा शब्द है जिसे सुनने

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वेश्या का भाई--भाग(२)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">कुछ वक्त के बाद केशर बाई की पालकी नवाबसाहब की हवेली के सामने जाकर रूक

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वेश्या का भाई--भाग(३)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">केशरबाई मुज़रा करते हुए बहुत थक चुकी थी इसलिए वो रातभर बिना करवट बदले

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वेश्या का भाई--भाग(४)

12 नवम्बर 2021
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<div><div align="left"><p dir="ltr">इन्द्रलेखा मजबूर थी या कि उसमें हिम्मत ना थी सही को सही या गलत क

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वेश्या का भाई--भाग(५)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">इन्द्रलेखा भीतर जाकर भगवान के मंदिर के सामने खड़ी होकर फूट फूटकर रो पड़

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वेश्या का भाई--भाग(६)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">इन्द्रलेखा और कुशमा इस बात से बेख़बर थी कि उनके पीछे जमींदार गजेन्द्र

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वेश्या का भाई--भाग(७)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">केशर नहाकर आई तो शकीला उसके और अपने लिए खाना परोस लाई,दोनों ने मिलकर

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वेश्या का भाई--भाग(८)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">ताँगा रूका, दोनों ताँगेँ से उतरीं फिर केशर ने ताँगेवाले को पैसे दिए औ

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वेश्या का भाई--भाग(९)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">मंगल के जाने के बाद फ़ौरन ही शकीला,केशर के पास पहुँची,उसे देखकर केशर ब

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वेश्या का भाई--भाग(१०)

12 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">मंगल को परेशान सा देखकर रामजस बोला....<br> मंगल भइया! इतना परेशान क्य

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वेश्या का भाई--भाग(११)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">मत रो मेरे भाई! अब से तू खुद को अकेला मत समझ,मैं हूँ ना ! तेरे दुःख ब

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वेश्या का भाई--भाग(१२)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">फिर कुछ देर सोचने के बाद केशर बोली....<br> क्या कहा तुमने? तुम मंगल भ

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वेश्या का भाई--भाग(१३)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">कोठे के बाहर मंगल ,रामजस का इन्तज़ार ही कर रहा था,जब रामजस मंगल के पास

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वेश्या का भाई--भाग(१४)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">बहु-बेग़म झरोखे पर अपने बीते हुए कल को याद करने लगी,उसके अब्बाहुजूर नि

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वेश्या का भाई--भाग(१५)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">नवाबसाहब के जाते ही गुलनार ने केशर से पूछा...<br> क्या हुआ केशर! नवाब

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वेश्या का भाई--भाग(१६)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">गुलनार और नवाबसाहब को ये मालूम नहीं चला कि उन दोनों की बातें परदे के

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वेश्या का भाई--भाग(१७)

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<div align="left"><p dir="ltr">दोनों का खाना बस खत्म ही हो चुका था कि तभी बुर्के में सल्तनत उनके पास

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वेश्या का भाई--भाग(१८)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">घायल लठैत की बात सुनकर गुलनार बोली...<br> जाने दीजिए उन्हें,जी लेने द

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वेश्या का भाई--भाग(१९)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">सबको दवाखाने से लौटते-लौटते दोपहर हो चुकी थी,सबके मन में हलचल भी मची

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वेश्या का भाई--भाग(२०)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">माई की कहानी सुनकर सबका मन द्रवित हो आया और तब रामजस बोला....<br> तो

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वेश्या का भाई--(अन्तिम भाग)

13 नवम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">जब रामजस चुप हो गया तो कुशमा ने उससे कहा...<br> तुम चुप क्यों हो गए?<

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