फिर कुछ देर सोचने के बाद केशर बोली....
क्या कहा तुमने? तुम मंगल भइया के दोस्त हो और यहाँ उनके कहने पर आएं हो।।
जी!हाँ! आप उनसे बात करने को तैयार ना थीं,इसलिए उन्होनें मुझसे कहा कि मैं आपके पास जाकर आपसे बात करूँ,रामजस बोला।।
लेकिन क्यो वो मुझ तक अपनी बात पहुँचाना चाहते हैं?जो वें चाहते हैं वो कभी नहीं हो सकता,केशर बोली।।
क्यों नहीं हो सकता? आपके भाई आपको इस दलदल से निकालने के लिए एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगाने को तैयार हैं और आप कहतीं हैं कि ये हो नहीं सकता,रामजस बोला।।
तुम्हारी अकल क्या घास चरने चली गई है?केशर बोली।।
क्यों ? ऐसा क्या कहा मैने? रामजस ने पूछा।।
मान लो भइया ने मुझे इस कोठे से बाहर निकाल भी लिया तो क्या समाज मुझे और भइया को इज्जत भरी निगाह़ो से देखेगा?लोंग तो यही कहेगें ना ! वो तो देखो वेश्या का भाई जा रहा है,फिर क्या करेगें भइया?केशर बोली।।
समाज का क्या है ?वो तो किसी को भी बिना लांछन लगाए जीने नहीं देता,फिर वो चाहे कितना भी शरीफ़ इन्सान क्यों ना हो?जब समाज ने सती सीता को नहीं छोड़ा तो फिर आप तो एक तवायफ़ हैं,भला आपको ये समाज कैसे छोड़ देगा?रामजस बोला।।
वही तो मैं भी कहतीं हूँ कि अगर ये सब छोड़कर शरीफ़ो वाला जीवन जीने लग जाऊँ तो क्या फिर कोई मेरा हाथ थामेगा?क्या फिर कोई लेगा मेरे साथ सात फेरे?कभी नहीं....ऐसा कभी नहीं हो सकता ,कोई भी शरीफ़ इन्सान मुझसे ब्याह करने को राज़ी ना होगा,केशर बोली।।।
बस!इतनी सी बात,पहले ये बताइए मैं आपको कैसा लगता हूँ?रामजस ने पूछा।।
लगता है कि तुम सच में पागल हो,तुम्हारा दिमाग़ फिर गया है,मैं तुमसे समाज की बातें कर रही हूँ और तुम यहाँ मेरे मुँह से अपनी खूबसूरती का बखान सुनना चाहते हो,केशर बोली।।
मैं आपको पसंद हूँगा,तभी तो आप मुझसे शादी करेगीं,रामजस बोला।।
क्या कहा? शादी! केशर बोली।।
लगता है आप ऊँचा सुनतीं हैं,आपको सुनाई नहीं दिया,अरे! बाबा! मैनें पूछा कि मैं आपको पसंद हूँ ,क्या आप मुझसे शादी करेगीं?रामजस बोला।।
शादी और मेरी ,वो भी तुम्हारे साथ,केशर हैरानी से बोली।।
हाँ! आपकी शादी.....वो भी मेरे साथ,बोलिए करेगीं मुझसे शादी,रामजस ने फिर से पूछा।।
ये कैसी बातें कर रहो हो तुम?केशर बोली।।
अच्छी बातें कर रहा हूँ और क्या कर रहा हूँ?,रामजस बोला।।
मुझ जैसी तवायफ़ से .....तुम....शादी करोगें,पागल हो क्या?केशर बोली।।
क्यों ?क्या हुआ?रामजस ने पूछा।।
मैं तवायफ़ हूँ,ये रूप-रंग और मेरा बदन तुम्हारे लायक नहीं रह गया है,पता है चौदह साल की उम्र से इस शरीर के साथ खिलवाड़ हुआ है,ना जाने कितनों ने मुझे स्पर्श किया है,ना जाने कितने मेरे साथ हमबिस्तर हो चुके हैं,मुझे रौंद चुके हैं और तुम कहते हो कि तुम मुझसे शादी करोगे, हा.....हा.....हा....हा....ऐसा मज़ाक मत करो जी!,केशर हँसते हुए बोली।।
मैं मज़ाक नहीं कर रहा जी! रामजस बोला।।
ये शरीर अपवित्र हो चुका है और ये आत्मा छलनी,मै इस योग्य नहीं रह गई हूँ कि कोई मुझे प्यार करें,बस मैं तो केवल लोगों के बिस्तर के ही लायक रह गई हूँ,हम तवायफ़ो के खरीदार आते हैं और एक रात का दाम देकर हमारे जिस्म के साथ खेलते हैं,कोई हमारे मुँह पर शराब की कुल्ली थूकता है तो कोई हमारे बाल नोचता है हम तवायफों को बुरा लगता है लेकिन फिर भी हम मजबूर होकर खी...खी...करके हँसते रहते हैं,इतनी बेइज्जती इतनी जिल्लत,हमारे दिल से पूछो कि उस वक्त हमारे दिल पर क्या गुजरती है? ये कहते-कहते केशर की आँखें भर आईं.....
तभी तो मैं चाहता हूँ कि आपको ऐसी जिन्दगी ना जीनी पड़े,मैं आपसे शादी करके आपको इज्जत की जिन्द़गी देना चाहता हूँ,रामजस बोला।।
जाओ जी...ये बड़ी बड़ी बातें किसी और से करना,तुम्हें क्या मैं बेवकूफ़ नज़र आती हूँ?मुझे सब समझ में आता है,कोई भी आदमी किसी दूसरे आदमी की छोड़ी हुई जूठन को मुँह नहीं लगाता,देवता भी नहीं,राम जैसे देवता को भी विश्वास ना था सीता पर तभी तो बेचारी सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी,वो तो सतयुग की बात थी और ये तो कलजुग चल रहा है,जब सीता जैसी सती ना बच पाई तो फिर मैं तो एक तवायफ़ हूँ,मैं कैसे बच सकती हूँ? केशर बोली।।
मैं राम नहीं हूँ,मैं साधारण इन्सान हूँ और मैं कभी भी तुम्हारी कोई भी परीक्षा नहीं लूँगा,रामजस बोला।।
जाओ जी! किसे बनाते हो? मैं खूब समझती हूँ,केशर बोली।।
क्या समझती हैं आप?रामजस ने पूछा।।
यही कि किसी तवायफ़ से कोई शादी नहीं करता,केशर बोली।।
ये आपकी ग़लतफ़हमी है,रामजस बोला।।
मुझे कोई गलतफहमी नहीं हो रही है,केशर बोली।।
क्योकिं आपको नहीं मालूम की मेरी माँ भी एक तवायफ़ थी,रामजस बोला।।
क्या कहा?तुम्हारी माँ भी तवायफ़ थीं,केशर बोली।।
हाँ! तभी मैं आपके दर्द को बखूबी समझ सकता हूँ,रामजस बोला।।
लेकिन तवायफ़ के साथ हमदर्दी जताना और जिन्द़गी भर साथ निभाना दो अलग-अलग बातें हैं,केशर बोली।।
ये बात भी आपने खूब कही,लेकिन मैं आपसे कोई हमदर्दी नहीं जता रहा,इन्सान होने का फ़र्ज निभा रहा हूँ और मैं आपसे ये भी वादा करता हूँ कि जिन्द़गी भर आपका साथ नहीं छोड़ूगा,रामजस बोला।।
अभी मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है ,वैसे भी काफ़ी देर हो गई है ,अभी तुम यहाँ से जाओ,केशर बोली।।
ठीक है तो ये बता दीजिए कि मंगल भइया से क्या कहूँ?रामजस ने पूछा।।
कुछ नहीं! मैं बाद में बताऊँगी,अच्छी तरह सोच समझकर,केशर बोली...
लेकिन कुछ तो पैगाम दे दीजिए उनके लिए,बहुत परेशान हैं वें आपके लिए,रामजस बोला।।
ठीक है तो उनसे कहना कि मैं ने उन्हें पहचान लिया है कि वें मेरे बड़े भइया मंगल हैं,लेकिन अपनी ज़ान ज़ोखिम में डालकर वें मुझे यहाँ से निकालने की कोश़िश ना करें,मैं यहाँ ठीक हूँ और वें भी वहाँ अपना ख्याल रखें,केशर बोली।।
वें आपका जवाब सुनकर फूले नहीं समाऐगें,रामजस बोला।।
तो चलो फिर अभी जाओ यहाँ से,केशर बोली।।
एक बात बोलूँ,रामजस ने पूछा।।
हाँ....हाँ....जल्दी बोलो और जाओ यहाँ से,केशर बोली।।
और फिर रामजस ज्यों ही दरवाजों के पास पहुँचा तो उसने केशर से कहा.....
आप बहुत ही खूबसूरत हैं,सच कहा है किसी ने कि कमल कीचड़ में ही खिलता है और इतना कहकर वो चला गया।।
फिर केशर उसकी बात को सुनकर मन ही मन मुस्कुरा उठी,आज उसे सही मायनों में किसी ने खूबसूरत कहा था....
रामजस के जाते ही केशर मेहमानखाने से बाहर निकलकर ऊपर जाकर अपने कमरें में पहुँची और बिस्तर पर लेटकर मन ही मन रामजस की बातें सोच सोचकर मुस्कुराने लगी,तभी इसी बीच शकीला भी कमरें में आ पहुँची और वो भी मंगल की बातें सोच सोचकर मन ही मन मुस्कुरा उठी,उसका मुस्कुराना देखकर केशर ने पूछा.....
क्यों री! कोई बड़े दिलवाला आया था क्या?
हाँ! कुछ ऐसा ही समझ,शकीला बोली।।
कौन था वो दिलवाला? केशर ने पूछा।।
और कौन तेरा भाई मंगल आया था,शकीला बोली।।
सच कहती है तू! केशर ने पूछा।।
और क्या? शकीला बोली।।
और पता है मेरे पास कौन आया था?केशर बोली।।
नहीं! बता तो कौन आया था?शकीला ने पूछा।।
मंगल भइया का दोस्त आया था उनका पैगाम लेकर ,केशर बोली।।
क्या कह रहा था?शकीला ने पूछा।।
पूछता था कि मुझसे शादी करोगी,केशर बोली।।
तो तूने क्या कहा?शकीला ने पूछा।।
मैनें अभी कुछ नहीं कहा,केशर बोली।
कौन है वो फ़रिश्ता जो एक तवायफ़ को अपनी दुल्हन बनाना चाहता है?शकीला ने पूछा।।
पता नहीं,कौन था?मैने तो उसका नाम ही नहीं पूछा,केशर बोली।।
तू भी ना! अव्वल दर्जे की बेवकूफ है,लो बताओ नाम ही नहीं पूछा,शकीला बोली।।
ख्याल ही नहीं आया,केशर बोली।।
मुझे पता होता तो मैं मंगल से ही पूछ लेती,शकीला बोली।।
इसका मतलब है कि दोनों की साँठ-गाँठ थी ,यहाँ आने के लिए,केशर बोली।।
लेकिन मेरी ज़ान कुछ भी हो आज दिल को जो सुकून और तसल्ली मिली है वो आज के पहले कभी भी नहीं मिली,शकीला बोली।।
क्यों ऐसा क्या हो गया?केशर ने पूछा।।
पता है आज मंगल ने धोखे से मुझे गले से लगा लिया,उसकी छुअन से मेरे बदन में एक फुरफुरी सी उठ गई,इससे पहले कितनों ने मुझे छुआ लेकिन ऐसा एहसास कभी भी मेरे मन में नहीं जागा,शकीला बोली।।
क्योकिं वो खरीदार नहीं है,उसे तेरे जिस्म से प्यार नहीं है,उसका मन आइने की तरह साफ है और शायद उन्होंने तेरी रूह को छू लिया है,केशर बोली।।
हाँ! शायद यही वो एहसास हैं जिससे मैं अब तक महरूम थी,शकीला बोली।।
मंगल भइया ने तुझे पाक़ इरादे से छुआ था इसलिए तुझे उनका छूना तरोजाता कर गया,केशर बोली।।
हाँ! शायद यही सच है,शकीला बोली।।
तुझे मंगल भइया अच्छे लगते हैं,केशर ने पूछा।
सच्चा इन्सान किसे अच्छा नहीं लगता,शकीला बोली।।
अगर मंगल भइया तुझसे शादी करना चाहें तो तू उनसे शादी करेगी,केशर ने पूछा।।
क्यों नहीं? ये तो मेरी खुशनसीबी होगी,लेकिन मैं एक तवायफ़ हूँ ऐसा तो नामुनकिन है,शकीला बोली।।
तू भी मेरी तरह ही सोच रही है,केशर बोली।।
सोचना पड़ता है कि शरीफ़ इन्सान भला हमें क्यों कुबूल करने लगा? शकीला बोली।।
बस! यही बात तो है,केशर बोली।।
अच्छा! अब सोते हैं बाक़ी बात सुबह करेंगें ,शकीला बोली।।
और फिर दोनों बिस्तर पर लेट गईं....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा......