कोठे के बाहर मंगल ,रामजस का इन्तज़ार ही कर रहा था,जब रामजस मंगल के पास पहुँचा तो मंगल ने फ़ौरन रामजस से पूछा....
क्या कहती थी कुशमा?
कहती थी कि मंगल भइया से कहना कि मेरे लिए अपनी जान जोखिम में ना डालें,अपना ख्याल रखें,अगर उन्होंने मुझे इस दलदल से निकाल भी लिया तो क्या ये समाज हम दोनों को साथ में रहने देगा?लोंग मेरे भाई को तवायफ़ का भाई कहकर पुकारेगें और मुझे ये मंजूर नहीं,रामजस बोला।।
ऐसा कहती थी,मंगल बोला।।
हाँ! मंगल भइया! भीतर से बहुत दुखी थी,रामजस बोला।।
तो तुमने उससे कुछ नहीं कहा,मंगल ने पूछा।।
मैनें कहा कि मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूँ,रामजस बोला।।
तो क्या बोली?मंगल ने पूछा।।
बोली कि हम तवायफ़ो की शादी नहीं हुआ करती,रामजस बोला।।
फिर तुमने उसे समझाया नहीं,मंगल बोला।
समझाया....मैने उसे बहुत समझाया,रामजस बोला।।
अच्छा!एक बात बताओ,अगर वो कोठे को छोड़कर मेरे साथ शरीफ़ो वाली जिन्द़गी बसर करने लगे तो क्या तुम उसका हाथ थामोगें,मंगल ने पूछा।।
बहुत खुशी से,ये मेरी खुशनसीबी होगी,रामजस बोला।।
क्या उस कालिख को तुम सच में अपने मस्तक पर लगाओगें?उसे अपने दिल और घर में क्या सच में जगह दोगे? मंगल ने अपनी दुविधा को दूर करते हुए पूछा।।
तुम ये क्यों भूलते हो मंगल भइया कि मेरी माँ भी तो एक तवायफ़ थी,रामजस बोला।।
वो माँ थी रामजस! और ये तुम्हारी पत्नी कहलाएगी,उसका तुम्हारे साथ खून का रिश्ता था,लेकिन ये रिश्ता बदनामी का होगा,मंगल का बोला।।
नहीं मंगल भइया ! ऐसा कभी नहीं होगा,मैं अपनी माँ के लिए तो कुछ नहीं कर सका लेकिन कुशमा के लिए मैं समाज से लड़कर दिखाऊँगा,रामजस बोला।।
तुम बहुत ही दरियादिल हो रामजस! मै धन्य हो जाऊँगा अगर तुम जैसा इन्सान मेरी बहन कुशमा का हाथ थामे,मंगल बोला।।
तो क्या मैं ये रिश्ता पक्का समझूँ? रामजस ने पूछा।।
रामजस की बात सुनकर मंगल हँस पड़ा और बोला.....
बखुर्दार ! बहुत भरोसा है खुद पर,
भइया! तो पहले बताओ कि भरोसा है ना मुझ पर कि मैं तुम्हारी बहन का साथ ताउम्र निभा पाऊँगा,रामजस ने पूछा।।
भरोसा ना होता तो तुमसे उससे मिलवाने ना लिवा जाता,मंगल बोला।।
तो क्या तुम मुझे अपनी बहन के काब़िल समझते हैं ?रामजस ने पूछा।।
काब़िलियत को हमेशा रूपए पैसों और खूबसूरती से नहीं आँका जाता,इन्सानियत और विचारों से आँका जाता है,विचार तुम्हारे अच्छे हैं ही और इन्सानियत भी तुम में कूट कूटकर भरी है....,मंगल बोला।।
ये सुनकर रामजस शरमा गया और फिर कुछ नहीं बोला.....
दोनों ऐसे ही बातें करते हुए हवेली के पीछे बनी अपनी कोठरी में आ पहुँचे,फिर दोनों हाथ मुँह धुलकर खाने बैठ गए....
खाना खाने के बाद दोनों अपनी अपनी चारपाई पर आकर लेट गए,तब रामजस ने मंगल से पूछा...
मंगल भइया! तुम कह रहे थे ना कि बहु-बेग़म से बात करोगें कुशमा के बारें में।।
हाँ! लेकिन क्या कहूँ उनसे जाकर?मंगल बोला...
उनसे पूरी सच्चाई बयाँ कर दो,हो सकता है कि औरत होने के नाते वें कुशमा का दर्द समझें और उसे कोठे से निजात दिलवाने में हमारी मदद करें,रामजस बोला।।
हाँ! शायद तुम सही कह रहे हो,मैं कल ही इस बारें में बहु-बेग़म से बात करता हूँ,मंगल बोला।।
और फिर दोनों थोड़ी देर बात करने के बाद सो गए...
दूसरे दिन मंगल दोपहर के समय बहु-बेग़म के कमरें के पास पहुँचा और नौकरानी से कहलवा भेजा कि बहु-बेग़म से बोलो कि मंगल उनसे मिलने आया है...
नौकरानी की बात सुनकर बहु-बेग़म बाहर आई उन्होनें गुलाबी रंग का जड़ाऊ शरारा पहन रखा था,अपनी बड़ी बड़ी आँखो में सुरमा लगा रखा था और मुँह में पान दबा रखा था,मंगल के पास आकर बोलीं....
अरे! मंगल भाईज़ान ! आप! कहिए कैसे आना हुआ? कोई ख़ास काम था।।
जी! हाँ! ख़ास काम ही था आपसे बहु-बेग़म,मंगल बोला।।
तो कहिए,इतना क्यों हिचकते हैं,हम आपकी बड़ी बहन जैसे हैं,बहु-बेग़म बोलीं....
जी! वही तो सोच रहा हूँ कि कैसे कहूँ,आप मेरी बड़ी बहन की तरह हैं इसलिए तो आपसे ये बात कहने आ गया,मंगल बोला।।
तो कहिए ना! डरिए मत,अगर हमारे वश में हुआ तो जुरूर आपकी मदद करेगें,बहु-बेग़म बोलीं....
लेकिन कैसे कहूँ? पता नहीं आप क्या समझेगीं?मंगल बोला।।
अपनी बड़ी बहन समझकर कह दीजिए,बहु-ब़ेग़म बोलीं।।
मेरी एक छोटी बहन थी,उसे गाँव का जमींदार उठा कर ले गया था,इतने सालों मैं उसे ढूढ़ता रहा,लेकिन वो मुझे नहीं मिली,लेकिन अभी कुछ दिनों पहले वो मुझे मिल गई,मंगल बोला।।
तो ये तो खुशखबरी है कि वो मिल गई,बहु-बेग़म बोलीं।।
लेकिन अब वो कोठें में नाचती-गाती है,मंगल बोला।।
ओह....ये बहुत बुरा हुआ,किस कोठे में नाचती गाती है वो,बहु-बेग़म ने पूछा।।
जी! वो वही है जो उस दिन मुजरा करने हवेली आई थी,मंगल बोला।।
वो....केशर बाई....तुम्हारी छोटी बहन है,बहु-बेग़म चौंकते हुए बोलीं....
जी! हाँ! वो ही मेरी छोटी बहन है,मंगल बोला।।
ओह....लेकिन ये मसला हल करना हमारे वश में नहीं,बहु-बेग़म बोलीं।।
लेकिन क्यों? बहु-बेग़म! मंगल ने पूछा।।
वो इसलिए कि केशरबाई हमारे शौहर की दिलअज़ीज हैं,नवाबसाहब इस बात के लिए कभी राज़ी ना होगें और फिर कब किस मर्द ने किसी औरत को रिहा करना चाहा है,ये मर्दों की दुनिया है और यहाँ मर्दो का ही हुक्म चलता है,बहु-बेग़म बोलीं।।
कुछ तो कीजिए,बहु-बेग़म! इल्तिजा है,मंगल बोला।।
नवाबसाहब कभी नहीं मानेगें,आपने देखा नहीं कि हमारें अलावा उनकी दो बेग़म और भी हैं लेकिन वें जब देखो तब कोठों में किसी ना किसी तवायफ़ के पास ही पड़े रहते हैं,बहु-बेग़म बोली।।
ये तो आपने ठीक कहा,मंगल बोला।।
पता है,उनकी जो सबसे छोटी बेग़म है वो हमारी सगी छोटी बहन है,हमसे पन्द्रह साल छोटी है और नवाबसाहब से पच्चीस साल छोटी होगी,नवाबसाहब ने पहले हम पर फिद़ा होके हमसे निक़ाह़ किया,फिर हमारी छोटी बहन जो उनकी बच्ची की उम्र की थी,उसकी जवानी देखकर पिघल गए और हमारे जल्लाद गरीब माँ बाप ने उसका भी सौदा कर दिया,नवाबसाहब की बीवी बनने से पहले हम किसी और के दुल्हन थे,बहु-बेग़म बोलीं।।
ये कैसीं बात कर रही हैं आप? मंगल बोला।।
हम सच कह रहे हैं भाईजा़न,बहु-बेग़म बोलीं।।
तो क्या आपके पहले शौह़र का इन्तक़ाल हो गया था? मंगल ने पूछा।।
जी! नहीं!बहु-बेग़म बोली....
तो फिर आपने उन्हें छोड़ दिया,मंगल ने फिर पूछा।।
जी! नहीं! वें बहुत गरीब थे,दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाते थे,नवाबसाहब ने हमारी खूबसूरती देखी और फिर हमारे शौह़र को मुँहमाँगे दाम देकर खरीद लिया,हमारे पहले शौह़र ने कभी भी इतना रूपया नहीं देखा था,उन्हें इतना रूपया दिया गया कि उनकी तमाम जिन्द़गी आराम से बसर हो सकें,हम बहुत रोए,बहुत गिड़गिड़ाए लेकिन हमारी किसी ने नहीं सुनी और हम इस हवेली में आ गए फिर नवाबसाहब और इस दुनिया को ही अपना सबकुछ मान बैठे,इसलिए तो हम कभी किसी से मिलने नहीं जाते,कोई ज्यादा रिश्तेदार हैं ही नहीं हमारे,इतना कहते कहते बहु-बेग़म की आँखों से आँसू टपक गए।।
ओहो...सारी औरतों का यही हाल होता है क्या?मंगल बोला।।
हाँ!शायद! बहु-बेग़म बोलीं।।
औरतों की तकलीफें शायद कभी कम नहीं होगीं,मंगल बोला।।
सही कहा आपने भाईजा़न!और आप फिकर ना करें हम नवाबसाहब से इस बारें में जरूर बात करेगें शायद वो हमारी बात समझें,बहु-बेग़म बोलीं।।
बहुत बहुत शुक्रिया तो अब मैं चलूँ,मंगल बोला।।
जी! खुदाहाफ़िज़! अल्लाह आपकी और आपकी बहन की हिफ़ाज़त करे,बहु-बेग़म बोलीं।।
और फिर मंगल वहाँ से चला आया और रात में उसने ये बात रामजस को बताई,
रामजस बोला...
शायद ! बहु-बेग़म कुछ कर सकें।।
हाँ!उम्मीद तो यही है,मंगल बोला।।
और फिर दोनों ऐसे ही बातें करते रहे....
फिर बहु-बेग़म ने ये बात नवाबसाहब से बताई,,नवाबसाहब ये बात सुनकर चौंक उठे और बोले...
बहु-बेग़म! आप इस पचड़े में ना ही पड़े तो अच्छा होगा,कुछ ऊँच-नीच हो गई तो ख़ानदान का नाम ख़ाक में मिल जाएगा...
अच्छा! एक श़रीफ़ आदमी अपनी बहन को कोठे से निकालना चाहता है तो आप कहते हैं कि हम इस पचड़े में ना पड़े और आप जो देर रात शराब पीकर कोठों में तवायफ़ो की बाँहों में पड़े रहते हैं तो ख़ानदान का नाम ख़राब नहीं होता....वाह....ये मर्द और उनके उसूल,बहु-बेग़म बोली।।
आप हमारी बेइज्जती कर रही हैं बहु-बेग़म!नवाबसाहब बोले।।
हा...हा...हा...हा...तो आपको मालूम है कि बेइज्जती क्या होती है?आप जैसे इन्सान के मुँह से ये लफ्ज़ अच्छा नहीं लगता नवाबसाहब! बहु-बेग़म बोलीं।।
ये आज आपको क्या हो गया बेग़म साहिबा?नवाबसाहब ने पूछा।।
एकाएक हमारा ज़मीर जाग गया है जो सालों से सोया था,बहु-बेग़म बोली।।
आप हिम़ाकत कर रही है,नवाबसाहब बोले।।
हिम़ाकत ही सही,लेकिन हम किसी को हक़ दिलवाने की बात तो कर रहे हैं,आपकी तरह तो नहीं जो दूसरे के हक़ छीनते फिरें,बहु-बेग़म बोली।।
आपका दिमाग़ फिर गया है आज,लगता है आप अपने होश-ओ-हवाश खो बैठीं हैं,नवाबसाहब चीखें।।
सही कहा आपने जब औरत अपना हक़ माँगती है या किसी और औरत के हक़ की बात करती है तो जमाना यही कहता है कि लगता है इस औरत के होश-ओ-हवाश खो गए हैं,बहु-बेग़म बोलीं।।
हम जा रहे हैं यहाँ से और इतना कहकर नवाबसाहब चले गए....
और बहु-बेग़म अपने कमरें के झरोखें के पास आकर खड़ी हो गई शायद झरोखे से आती हवा उन्हें सुकून दे सकें....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....