...'फसक' उत्तर-सत्य वाले इस दौर की एक जीती-जागती तस्वीर है जहाँ ‘अच्छे दिन’ के नाम पर अफ़वाह, अन्धविश्वास और फिरकापरस्ती के दिन फिर गये हैं; तथ्य, तर्क-विवेक और वैज्ञानिक नजरिए के प्रति आकर्षण का अल्पकालिक उभार अपने उतार पर है; उन गिरोहों की चाँदी है जिनके पास ‘भावनाएँ मथने वाली मथानियाँ’ हैं और एक नया सार्वजनिक दायरा रचते फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे द्रुत माध्यमों को भी उल्टी गंगा बहाने के अभियान में जोत दिया गया है। बचवाली नामक पहाड़ी क़स्बे की ज़मीन पर ऐसे दौर का साक्षात्कार करता यह उपन्यास तेजू, रेवा, पुष्पा, चन्दू पाण्डेय, भैयाजी, नन्नू महाराज, पी थ्री, लालबुझक्कड़, मोहन सिंह जैसे अलग-अलग पहचाने जा सकने वाले पात्रों के जरिये हमें हमारी दुनिया का एक नायाब ‘क्लोज-अप’ दिखाता है। यह वही दुनिया है