ग़ज़ल ( हम हैं नया ज़माना, वे जाती हुई सदी ) मेरे दिल में है बस्तर का हर गांव गली , ना जाने क्यूं वे एक ज़माने से है दुखी। उपरी चमक दमक उसे बिल्कुल नहीं पसंद, वे धोती, कुर्ता ,पगड़ी में ही पाये ख़ुशी। ये सोचते हैं हम,कि पिछड़ से गये हैं वे, वे हमको देख सोचते ये कैसी रफ़्तगी। शायद ये दो विचारों का टकराव है सनम, हम हैं ,नया ज़माना ,वे जाती हुई सदी। सरकारें उनके दर्द को समझे सलीके से, बदलाव लाने की करें ना कोई हड़बड़ी। (डा संजय दानी )
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