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“गज़ल” वास्ता रह गया

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बहर - बहरे-मुतदारिक मुसम्मन सालिम , अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन, वज़्न- 212--212--212--212 “गज़ल” आप की आज छवि देखता रह गया उन निगाहों में हवि फेंकता रह गया जो दिखा देखने की न आदत रही फिर फिरा के नयन पोछता रह गया॥ ले उड़ी शौक रंगत नयी रोशनी उस दिशा में नजर फ

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