।। गीत ।। मन विसर्जित कैंसी व्यथा मन आखिर कैंसे बताए तुम्हे... राह डले पुष्प कांटे हुए, छाले कैंसे आखिर बताए तुम्हे..
क्या सोचता रे पागल मनवा जो वीत गया सो वीत गया । इस झुठे खेल में मूल हि क्या।। कोई हार गया कोई जीत गया ।। क्या सोचता रे .........................हम चाहें वही हो जरुरी नहीं ।
"गीत" झूम के सावन आ गया रे एक बूँद वर्षा की गगन से, आ के गिरती गालएक बूँद अरवी के पत्ते, एक टमाटर लाल......झूम के सावन आ गयो रेएक बूँद उड़ चली अकेली, जा के मिलती तालएक उड़ी बौछार बिकल हो, जा के पहुंची खाल.....झूम के सावन आ गयो रेएक उड़ चली संग सहेली, कर के ऊँचा भालएक