विकल्प-जालों की अकृत्रिमा धुनें
चटख उट्ठी हैं
समाजवादी इन्द्रों के गुलाब-वन की
'निकटतम अवस्त्रा' अप्सरा कलिकाएँ.
वाल्ट्ज पर थिरकते हैं असहज पाँव
विवश तन्विता लहराती है
चुप रहो...इस्सस...!
उद्दाम आसव का सागर
क्षताओं की बहक
विलास घोलती है शिराओं में.
अनगिन रंग लिए मानसरोवर
मूर्च्छित होता जाता है.
अविराम एक संस्कृति
आसुरी खाल ओढ़ती चली जाती है.
विलास... विलास... विलास
एक ही गूंज है समस्त थिरक पर
बाहर... भीतर
स्तनों के कोरक-कोणक
बेतरतीब बहकी लटों की फहर
अधरों पर की कृत्रिम उन्मत्तता
एक खोखली शीशी का जहर पीती है
परंपराच्युति से अनांदोलित.
भीड़ से भय है किराए की राग-कन्याओं को
विनिमिता पत्नियों, प्रेयसियों को.
नीली कुहर चंचु में लिए
यक्ष, गंधर्व, किन्नर शिव नहीं बन पाते
कुहर अनुपयोगिता रह जाती है.
विस्मित, मूक कड़वा मुख लिए
गाइल्स विंटरबोर्न, गोबर हरती
पैसे चुका भाग आते हैं
मार्टीसाउथ, धनिया, झुनिया तो
सेवों के, महुएके पेड़ तले
विरह गीत में डूबी
कहीं
खड़ी होंगी
सभ्यता... से दूर
कहीं... बहुत दूर
डूबी कहीं खड़ी होंगी
प्रतीक्षारताएँ
राम नरेश पाठक की अन्य किताबें
रामनरेश पाठक छायावाद पूर्व की खड़ी बोली के महत्वपूर्ण कवि माने जाते । आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद स्वाध्याय से हिंदी अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने उस समय के कवियों के प्रिय विषय समाज सुधार के स्थान पर रोमांटिक प्रेम की कविता का विषय बनाया। आज की इस पोस्ट में हम हिंदी के प्रसिद्ध कवि रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय पढ़ेंगे तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है और आपको अंत में बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए हैं और उनके उत्तर भी दिए गए हैं। मननशील, विद्वान और परिश्रमी थे। हिंदी के प्रचार-प्रसार और साहित्य-सेवा की भावना से प्रेरित होकर इन्होंने 'हिंदी मंदिर' की स्थापना की। इन्होंने अपनी कृतियों का प्रकाशन भी स्वयं ही किया। ये दिवेदी युग के उन साहित्यकारों में से हैं, जिन्होंने द्विवेदी-मंडल के प्रभाव से पृथक रहकर अपने मौलिक प्रतिभा से साहित्य के क्षेत्र में कई कार्य किए। इन्होंने भाव प्रधान काव्य की रचना की।। राष्ट्रीयता, देश-प्रेम, सेवा, त्याग आदि भावना प्रधान विषयों पर इन्होंने उत्कृष्ट साहित्य की रचना की। ये हिंदी साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग के प्रचार मंत्री भी रहे। सराहनीय कार्य किया। साहित्य की विविध विधाओं पर इनका पूर्ण अधिकार था। कविता के आदर्श और सूक्ष्म सौंदर्य को चित्रित करने वाला यह कवि पंचतत्व में विलीन हो गया।
भाषा भावानुकूल, प्रभाहपूर्ण, सरल खड़ी बोली है। संस्कृत के तत्सम शब्दों एवं सामासिक पदों की भाषा में अधिकता है। शैली सरल, स्पष्ट एवं प्रभाहमयी है। मुख्य रूप से इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका प्रकृति चित्र वर्णनात्मक शैली पर आधारित है। छंद का बंधन इन्होंने स्वीकार नहीं किया है तथा प्राचीन और आधुनिक दोनों ही छंदों में काव्य रचना की है। इन्होंने श्रंगार, शांत और करूण रस का प्रयोग किया है। अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग दर्शनीय है।
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