घिसी हुई चप्पल बयां करती है
दीनता, संघर्ष, शिथिलता और
हाशिए पर रखी देहात्मा की
जीवन- दर्शन दास्तां को
जो मुश्किलों से घिरी हुई है
निराशा से भरी हुई है
जिनका ना कोई साथी है
और ना ही कोई सहारा
ना राह में प्रकाश है उनके
ना ही कोई सवेरा
भोजन की तलाश में व्याकुल
ताउम्र लगाते हैं वो फेरा
ना आश्रय ना ठिकाना उनका
और ना ही कोई घराना
शोषित होते हैं वो जग में
और उपहास करता है ज़माना
सूख गया है आंखों का पानी
जैसे संवेदना ही मर गई हो
खुशियों ने मुंह मोड़ लिया इस कदर
मानो सम्पूर्ण जीवन श्रापित हो गया हो।