जहां साथ ना हो अपनों का
जहां बात ना हो सपनों की
जहां प्रेम ना हो दिलों में
जहां मानवता लुप्त हो बिलों में
वहां कौन रहता है?
जहां स्वार्थ का डेरा हो
जहां अहंकार का फेरा हो
जहां भ्रष्ट परिवेश हो
जहां बहरूपिए का भेष हो
वहां कौन रहता है?
जहां स्त्री का अपमान हो
जहां गोरख - धंधो का मान हो
जहां बचपन गुमनाम हो
जहां गमगीन हर शाम हो
वहां कौन रहता है?
जहां भविष्य सोता हो
जहां बुढ़ापा रोता हो
जहां जीवन निष्प्राण हो
जहां ग्रीवा पर कृपाण हो
वहां कौन रहता है?
जहां द्वेष का भाव हो
जहां डूबती नाव हो
जहां सम्बन्धों में दाग हो
जहां अपना-अपना राग हो
वहां कौन रहता है?
जहां बुजुर्गों का आशीर्वाद हो
जहां माता - पिता का प्यार हो
जहां परिवार का साथ हो
जहां संस्कारों की बात हो
वहां स्वयं ईश्वर रहता है।