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मेरे प्यारे दादाजी

8 अक्टूबर 2021

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दादाजी ने हाथ पकड़कर 

चलना मुझे सिखाया था

भ्रमित ना होना जीवन में

ये मुझको समझाया था


मेरे बचपन को उन्होंने

यादगार बनाया था

खेल-खेल में दादाजी को

मैंने बहुत सताया था


नखरे दिखा-दिखा कर

जब मैं रूठ जाती थी

मेरी पसंद की चीज़ तुरन्त

सामने हाज़िर हो जाती थी


मां-पापा की डांट से भी

दादाजी बचाते थे

कहना मानो सदा बड़ों का

ये भी हमें सिखाते थे


पढ़ना-लिखना हमें सिखाया

संस्कारों से परिचित करवाया

जीवन पथ पर कभी ना डरना

दादाजी ने हमें समझाया


दादाजी रोज़ हमें, नए-नए

किस्से-कहानियां सुनाते थे

जो अनायास ही हमारे व्यवहार में

नैतिकता भर जाते थे


बड़ों के साथ बड़े और बच्चों के साथ

बच्चे बन जाते थे, दादाजी

निराश कभी किसी को भी

नहीं होने देते थे, दादाजी


घर की आन-बान और शान थे

मेरे दादाजी

मिलजुल कर सब रहें प्यार से

एकता की मिसाल थे, मेरे दादाजी


खुशियों का खज़ाना थे 

बातों का पिटारा थे 

सही-गलत में फ़र्क बताते

ईश्वर का वरदान थे, दादाजी


मेरे मित्र, शिक्षक, मार्गदर्शक

मेरे सबकुछ थे मेरे दादाजी

१३साल हो गए उन्हें हमसे दूर गए हुए

लेकिन आज भी हरपल याद आते हैं दादाजी


उनके बिन घर सूना हो गया है

उनकी याद अब दर्द को छूना हो गया है

छोड़ गये जब से दादाजी हमें

खुशियाँ अधूरी ग़म कई गुना हो गया है


उनके साथ बिताया हुआ एक-एक पल

परिवार के हर सदस्य के लिए अविस्मरणीय है

उनकी याद प्रतिपल हमें एक नई दिशा की ओर अग्रसर करती है और हमारे अंदर मनोबल का संचार करती है।





आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत सुन्दर

9 अक्टूबर 2021

Ranjeeta Dhyani

Ranjeeta Dhyani

9 अक्टूबर 2021

बहुत-बहुत आभार आपका 🙏🙏🙏

18
रचनाएँ
मन से मंज़िल तक......
5.0
इस पुस्तक में प्रस्तुत सभी रचनाएं मेरी कलम से कृत स्व- विचारों एवं भावनाओं का परस्पर संग्रह है। जिसका उद्देश्य ना केवल पाठक वर्ग को आनंदित करना है अपितु उन्हें चिंतनशील मनुष्य बनने हेतु प्रेरित करना भी है। इसी आशा के साथ शुरू होता है हमारा ये सुनहरा सफ़र ....🙏💐🙏
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30 जुलाई 2022
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अपनों के संग वक्त बितानामुझको अच्छा लगता हैअपनों पर यूं हक जतानामुझको सच्चा लगता हैकभी रूठना कभी मनानामुझको मोहक लगता हैअपनों से दूर हो जानामुझको नाहक लगता हैफरेबी इस दुनिया मेंहर शख्स बेगाना लगता हैह

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